‘‘शादी से पहले तो बड़े वादे किए थे कि तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखूंगा, तुम्हें दुनिया भर की खुशियां दूंगा, तुम सिर्फ मेरी रानी बन कर रहोगी. कहां गए वे वादे? तुम्हें तो मेरी फीलिंग्स की कोई परवाह ही नहीं है. तुम आखिरी बार मुझे कब किस हिलस्टेशन घुमाने ले कर गए थे? अब तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं है. अब तुम मुझ से प्यार नहीं करते.’’

‘‘तुम तो जब देखो सिर्फ शिकायतें ही करती रहती हो, कोशिश करता तो हूं हर वादा पूरा करने की. तुम समझती क्यों नहीं? पहले हालात और थे अब कुछ और हैं. अब हमारी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. हमें अपने भविष्य की प्लानिंग भी तो करनी है. तुम क्या चाहती हो नौकरी छोड़ कर तुम्हारे साथ घूमता रहूं? तुम भी तो कितनी बदल गई हो. तुम ने भी तो शादी के समय वादा किया था कि कभी कोई शिकायत नहीं करोगी. मेरे साथ हर हाल में खुश रहोगी. फिर आए दिन की ये शिकायतें क्यों? मैं तो तुम से कमिटमैंट कर के फंस गया. इस से अच्छा तो मैं शादी से पहले था. तुम तो हर समय मुझे अपने हिसाब से चलाना चाहती हो. हमारा रिश्ता बराबरी का है. हम लाइफपार्टनर हैं. मैं तुम्हारा कोई गुलाम नहीं हूं.’’

विवाह के 1-2 साल बाद हर पतिपत्नी के बीच कमिटमैंट का यह सीन आम देखने को मिलता है. दरअसल, विवाह के समय फेरों के वक्त वरवधू द्वारा लिए गए वचनों से ही कमिटमैंट की शुरुआत हो जाती है. अगर आप विवाह का शाब्दिक अर्थ जानेंगे तो पाएंगे कि इस का अर्थ है विशेष रूप से उत्तरदायित्व यानी जिम्मेदारियों का वहन करना. जबकि विवाह का बेसिक कौन्सैप्ट होता है एकदूसरे की योग्यताओं और भावनाओं को समझते हुए गाड़ी के 2 पहियों की तरह प्रगतिपथ पर अग्रसर होते जाना. एकदूसरे का पूरक होना. लेकिन कई बार विवाह के समय एकदूसरे से किए गए कमिटमैंट्स बाद में दोनों के बीच विवाद का कारण बन जाते हैं, जिस का परिणाम हत्या, आत्महत्या या फिर तलाक के रूप में निकलता है.

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