ऋतु के घर पार्टी थी. 20-25 लोगों को बुलाया था. पार्टी की 2 वजहें थीं, पहली पति को प्रमोशन मिली थी और दूसरी बेटे का पीएमटी में सिलैक्शन हो गया था. पार्टी में ऋ तु ने कुछ पड़ोसी, कुछ करीबी रिश्तेदार, कुछ सहेलियों और बेटे के दोस्तों को आमंत्रित किया था.
तय समय पर सारे उपस्थित थे, मगर हाल में शोरशराबा, हंसीमजाक या बातचीत की जगह एक अजीब सी खामोशी थी. ज्यादातर लोग अपने मोबाइल फोन पर ही बिजी थे. अंदर आए, मेजबान से हायहैलो की, बधाई दी और फिर एक कोना पकड़ मोबाइल में आंखें गड़ा कर बैठ गए. यहां तक कि ऋ तु की सहेलियां जो पहले इकट्ठा होती थीं तो क्या हंगामा बरपाती थीं, चुगली, शिकायत, ताने, हंसीठिठोली थमती ही न थी.
एकदूसरे की साड़ी, गहनों पर उन की नजर रहती थी, पर अब वे नजरें भी मोबाइल में ही अटकी हैं. कोई वीडियो देख रही है, कोई यूट्यूब तो कोई फोन पर बात करने में मशगूल है.
एक कोने में बेटे के 2 दोस्त एकदूसरे से सिर सटाए मोबाइल पर फुटबाल मैच देख रहे हैं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले डिबेट शो में मगन है तो कोई न्यूज बुलेटिन देख रहा है. आपस में बातचीत के लिए तो जैसे किसी के पास न वक्त है न जरूरत. हकीकत की दुनिया से दूर सब आभासी दुनिया के मनोरंजन में डूबे हैं.
बदलती जीवनशैली
पहले दोपहर का भोजन बनाने और चौका समेटने के बाद गृहिणियां पड़ोस में जा कर बैठती थीं. एकदूसरे का दुखसुख बांटती थीं. जाड़ों के दिनों में जिधर देखो 5-6 औरतों का जमावड़ा लगा होता था. बुनाई के नएनए डिजाइनें सिखाई जाती थीं. नईनई रैसिपीज बातोंबातों में सीख ली जाती थीं. अचार, मुरब्बा, पापड़ एकसाथ मिल कर बनाए जाते थे. मगर अब दोपहर का खाना बनाने के बाद गृहिणी पड़ोस में ?ांकती तक नहीं. बस मोबाइल फोन ले कर बैठ जाती है.