बदलते वक्त ने परिवारों को आज न्यूक्लियर फैमिली में बदल दिया है. बचपन से लड़की को अपने पिता के करीब माना जाता है तो जाहिर सी बात है वही उस के आदर्र्श भी होंगे. परेशानी तब होती है जब शादी के बाद उस सांचे में वह अपने पिता के अलावा अपने पति को फिट नहीं कर पाती. हर समय वह पिता का ही अक्स ढूंढ़ती है पति में.
यह समस्या तब और भी बढ़ती है जब वह पति को बातबात पर पिता जैसा न होने का ताना देती है. वह विवाह के बाद नए घर में प्रवेश करती है तो उस के मन में सपनों के साथ कुछ डर भी होता है. ऐसे में यही डर लिए जब पिता अपनी लाड़ली को बारबार फोन करते हैं या जल्दीजल्दी मिलते हैं तो इस से बेटी का स्वभाव प्रभावित रहता है. पिता को तरजीह देना बुरी बात नहीं. पर इस चक्कर में आपसी संबंधों को नजरअंदाज कर दिया जाए, यह भी उचित नहीं.
चाहे लव मैरिज हो या अरैंज मैरिज, नए परिवार का परिवेश एक लड़की के लिए अनजान ही होता है. ऐसे में घर के प्रत्येक सदस्य का फर्र्ज है कि वह उसे प्यारदुलार और सौहार्दपूर्र्ण वातावरण दे. कई बार कुछ गलतफहमियां दरार पैदा कर देती हैं. तब पछतावे के अलावा हाथ में कुछ नहीं रहता.
1. गुस्से में निर्णय न लें
परिवार में कुछ छोटीमोटी बात हो जाती है और आप को वह बात बुरी लगती है और आप गुस्से में आ कर कुछ भी निर्णय ले लें तो यह गलत है. गुस्से में लिया निर्णय गलत होता है और बात को बिगाड़ देता है. ऐसे में जीवनभर अफसोस करने से बेहतर है कि संभल कर निर्णय लें. बात की गहराई तक जाएं, मन शांत होने पर उस बात पर पुनर्विचार करें.