दिनेश और उन की पत्नी उर्मिला अपनी बेटी सीमा के विवाह के 3 माह बाद उस की घरगृहस्थी देखने जयपुर जा रहे थे. पूरे रास्ते उन की बातचीत का विषय यही रहा कि उन की लाडली घरगृहस्थी कैसे संभालती होगी? शादी से पहले तो उसे पढ़नेलिखने से ही फुरसत नहीं थी. उन्होंने अपनी बेटी को सिखाया तो सब कुछ है, लेकिन जानने में और जिम्मेदारी उठाने में फर्क होता है और यही फर्क उन्हें परेशान कर रहा था कि पता नहीं वहां जा कर क्या देखने को मिले.
मगर उन की हैरानी का उस वक्त ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने सीमा का घर खूब सजाधजा और व्यवस्थित देखा. कारण बहुत जल्दी उन की समझ में आ गया. घर के कामकाज जितना सीमा जानती थी, उतना ही उन का दामाद रवि भी जानता था. जिम्मेदारी का अनुभव दोनों को ही था. अत: दोनों ही इस जिम्मेदारी का लुत्फ उठा रहे थे.
उर्मिला हैरान थीं कि उन की बेटी की गृहस्थी में दामाद बराबरी की भूमिका अदा कर रहा है. दोनों कभी अपनी अज्ञानता पर मिल कर ठहाके लगाते, तो कभी कुशलता पर एकदूसरे की पीठ ठोंकते. ‘फलां औरत वाले काम’, ‘फलां मर्दों वाले काम’ के पचड़े के बजाय जिसे जो काम आता करता और जो काम नहीं आता उसे करने की कोशिश दोनों ही करते. दिनेश हैरानी से बेटी को गाड़ी धोते, उस की सर्विसिंग करवाते और दामाद को झाड़ू लगाते, सब्जियां काटते देख रहे थे.
पति ही नहीं साथी
रवि शुरू से ही कभी तालीम की वजह से, तो कभी नौकरी की वजह से परिवार से दूर अकेला रहा, जहां उसे अपना हर काम खुद करना पड़ता था. बाहर का खाना पसंद न होने की वजह से वह खाना भी खुद ही बनाने लगा. सीमा से शादी के बाद अच्छी बात यह हुई कि वह खालिस पति बनने के बजाय सीमा का सही माने में साथी बन गया.