रेमंड शूटिंग्स के विज्ञापनों की एक खास बात जो हर किसी के जेहन में जानेअनजाने में दर्ज हो जाती है वह है रिश्तों के तानेबाने को भुनाना. रेमंड के विज्ञापनों में अपने उत्पाद की सीधी तारीफ नहीं होती, बल्कि दिखाया यह जाता है कि एक कामयाब पूर्ण पुरुष कैसा होता है. सफलता के पीछे नातेरिश्तों और उन की भावुकता के साथसाथ परिधान का संबंध एक मिनट से भी कम वक्त में दिखा कर बाजार में छा जाने और बाजार लूट ले जाने वाले रेमंड के पूर्व चेयरमैन और संस्थापक विजयपत सिंघानिया इस साल प्रमुख सुर्खियों में रहे.
वे सुर्खियों में इसलिए नहीं रहे कि उन्होंने कोई नया ब्रैंड लौंच किया था या फिर हवा में उड़ते वर्ल्ड रिकौर्ड बनाते कोई नया कारनामा दिखाया था, बल्कि इसलिए कि जिन रिश्तेनातों की भावुकता को वे अपने विज्ञापनों में परोसा करते थे वह एक क्रूरता की शक्ल में हकीकत बन उन के सामने आ खड़ी हुई थी. इस क्रूरता को जब वे अकेले बरदाश्त नहीं कर पाए तो मीडिया के जरिए अपनी व्यथा साझा करते दिखे. 79 वर्षों की अपनी जिंदगी में वे पहली दफा इतने सार्वजनिक हुए कि रेमंड का इश्तहार और उस की ब्रैंडिंग बगैर किसी खर्च के हो गई. लेकिन जिस तरीके से हुई उस ने उद्योग जगत और समाज को हिला कर रख दिया. जिस ने भी देखासुना उस ने विजयपत सिंघानिया से हमदर्दी जताई. वे हमदर्दी के हकदार थे भी.
गुलाबी रंगत के रोबदार चेहरे वाले विजयपत की गिनती माह अगस्त तक वाकई कंपलीट मैन्स में शुमार होती थी. ऐसी उम्मीद किसी को न थी कि कल तक अरबोंखरबों की जायदाद के मालिक विजयपत सिंघानिया, जिन्हें कारोबारी दुनिया में विजयपत बाबू के नाम से ज्यादा जाना जाता है, पाईपाई की मुहताजी का अपना दुखड़ा मीडिया के जरिए रो कर हमदर्दी व इंसाफ मांगने को मजबूर होंगे.