32 साल की मीना बहुत दिनों से गौर कर रही थी कि उस के ससुर की नजरें सही नहीं. वे कभी उसे चोर निगाहों से देखते रहते हैं, कभी जानबूझ कर हाथ छूने का प्रयास करते हैं तो कभी कुछ इशारे भी करते हैं. कई दफा ससुर खुले आंगन में कच्छा पहन कर नहाते हुए उधर से गुजरती मीना को घूरघूर कर देखने लगते. मीना एकदम से अंदर कमरे में छिप कर बैठ जाती.
मीना की शादी को अभी 1 साल भी पूरे नहीं हुए थे. घर में नई थी और पितातुल्य ससुर के बारे में ऐसी बात सोचना भी उस के लिए आसान नहीं था. मगर अब उसे अक्सर ही यह एहसास होने लगा था कि ससुर उसे बेटी की नजरों से नहीं देखते, उन की नजरों में और हरकतों में कहीं न कहीं बदतमीजी झलकती है.
एक दिन उस ने अपनी मन की बात अपने पति से कहीं तो पति उसे चुप कराते हुए बोला," यह क्या कह रही हो? जानती भी हो वे मेरे पिता हैं. गोद में खिलाया है उन्होंने मुझे. तुम्हारे भी तो पिता ही हुए न. इस उम्र में उन पर ऐसे इल्जाम कैसे लगा सकती हो?"
"मैं इल्जाम नहीं लगा रही सुजय. मुझे ऐसा लगा."
"पर ऐसा क्यों लगा तुम्हें ? सारी बात बताओ मीना. "
"जब भी मैं उन्हें चाय देने जाती हूं तो वह चाय लेते वक्त जानबूझ कर मेरे हाथ छूने की कोशिश करते हैं और अजीब तरह से मेरी तरफ देखते हैं. एक दिन तो कहने लगे कि जरा कंधे पर तेल मल दो. ऐसा कह कर वे कपड़े उतारने लगे पर काम का बहाना बना कर मैं बाहर भाग आई."