ईंटपत्थरों की दीवारों में जब रिश्तों का एहसास पनपता है, तभी वह घर कहलाता है. हमारे रिश्तों की बुनियाद हमारे उन अपनों से होती है, जिन से हमारा खून का रिश्ता होता है. दादादादी, ताऊ, बूआ, मौसी, मामा इत्यादि कितने ही ऐसे रिश्ते हैं, जो हमारे संबंधों के आधार हैं, जिन का साथ हमें जिंदगी भर निभाना होता है. लेकिन आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में हम रिश्तों की अहमियत भूलते जा रहे हैं. व्यस्त जीवनशैली और समय की कमी के कारण हम अपने नातेरिश्तेदारों से दूर होते जा रहे हैं, जिस का असर हमारे बच्चों के कोमल मन पर भी पड़ रहा है. तभी तो आज के बच्चों को रिश्तों की अहमियत के बारे में बिलकुल पता नहीं होता.
क्यों अनजान हैं बच्चे रिश्तों से
हम पैदा होते ही रिश्तों की डोर में बंध जाते हैं और तभी से रिश्तों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है. लेकिन हम पीछे मुड़ कर देखें तो कितने ऐसे रिश्ते हैं, जिन्हें हम निभा पाते हैं? इस बदलते परिवेश ने हमें अपनों से दूर कर दिया है. जब हम खुद ही अपने रिश्तों से दूर हो गए हैं, तो भला हमारे बच्चे क्या समझेंगे कि रिश्ता क्या होता है. आज के बच्चों में न तो रिश्तों के बारे में जानकारी की उत्सुकता है और न ही उन्हें निभाने में.
मनोरोग चिकित्सकों का कहना है कि बच्चों में संस्कार की नींव मातापिता द्वारा ही रखी जाती है. अगर मातापिता ही रिश्तों को तवज्जो नहीं देते हैं, तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही.
आजकल के बच्चे क्यों अनजान हैं रिश्तों के महत्त्व से? क्या हैं इस की खास वजहें? आइए, इस पर एक नजर डालें.