यह सोचने वाली बात है कि क्यों हर व्रत का पालन बस स्त्रियां ही करती हैं फिर चाहे वह करवाचौथ का हो, अहोई अष्टमी या वट सावित्री? क्यों बस पुरुषों की लंबी उम्र की कामना के लिए ही व्रत रखे जाते हैं? हर व्रत के साथ एक पौराणिक कथा भी जुड़ी होती है जिस कारण अधिकतर स्त्रियां इन व्रतों को बहुत ही श्रद्धा और कड़े नियमों के साथ रखती हैं.
मान्यता तो यह भी है कि यदि पहला करवाचौथ व्रत निर्जला रखा है तो हर करवाचौथ ऐसे ही रखना होता है चाहे ऐसे व्रतों का आप के स्वास्थ्य पर कितना भी बुरा प्रभाव क्यों न पड़े.
क्या वास्तव में हर माह पूर्णिमा या निर्जला एकादशी व्रत करने से घर में शांति बनी रहती है? क्यों हम इन व्रतों पर इतनी श्रद्धा रखते हैं? क्या यह हमारी भीरुता का परिचायक नहीं है? जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के बजाय हमारे धर्मगुरु हमें व्रत करने की सलाह देते हैं.
पढ़ेलिखे भी झांसे में
क्यों हम किसी भी कठिन समय में कर्म के बजाय व्रत को महत्त्व देते हैं? क्यों आज भी पढे़लिखे लोग इन व्रतों के जाल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं?
इस के पीछे का कारण है उन का अंधविश्वास या फिर उन का आलस्य. किसी भी समस्या के समाधान के लिए हमें एक सुनियोजित तरीके से काम करना होता है, जिस के लिए लगती है कड़ी मेहनत और अथक प्रयास. मगर बहुत बार हमें व्रत की राह अधिक आसान लगती है क्योंकि हमें हमेशा से ही वह चीज ज्यादा आकर्षित करती है जो हमें सपनों की दुनिया में खींच ले जाती है.