क्या मांएं बोर्डरूम को चला सकती हैं? यह सवाल अब अहम होता जा रहा है, क्योंकि पढ़ीलिखी, अनुभवी, सफल युवतियां मां भी बनना चाहती हैं और कार्यक्षेत्र में अपनी उपलब्धियों को बनाए भी रखना चाहती हैं. आमतौर पर साधारण कामकाजी युवती को मां बनने के बाद बच्चे की देखभाल के लिए साल 2 साल की छुट्टी लेनी पड़ती है और इस दौरान उन के पुरुष सहयोगी सफलता की कई सीढि़यां चढ़ चुके होते हैं.
कामकाजी मांओं को घर में बच्चों के लिए दिन में 10-12 घंटे देने ही होते हैं. इसलिए अगर वे औफिस में और 10 घंटे लगाएं तो न सोने का समय मिलेगा, न सुस्ताने का और न ही पढ़नेलिखने का. बच्चों की ललक प्रकृति की देन है और बच्चा होने के बाद औरत सारा समय उस के बारे में सोचती रहती है, चाहे वह बोर्डरूम में बैठी हो या बौयफ्रैंड के साथ हो.
बच्चों के साथ बोर्डरूम चलाने के लिए यदि विश्वस्त नैनी या सास/मां मिल भी जाए तो कुछ हद तक काम बन सकता है. पर बच्चे बच्चे होते हैं वे कब दादीनानी या आया के हाथ से निकलने लगें, कहा नहीं जा सकता. पर इस का अर्थ यह नहीं कि मांएं अपने वर्षों के परिश्रम को बच्चों पर गंवा दें.
आज का युग हर समस्या का हल ढूंढ़ने का है. आज बहुत से काम तकनीक के सहारे दफ्तरों से दूर रह कर भी किए जा सकते हैं. बड़ी कंपनियां चलाने वाले सालों अपने खुद के दफ्तरों या कारखानों में नहीं जाते. पुरुष अधिकारी अकसर अपना समय गोल्फ खेलते हुए या अपनी स्टेनो के साथ रंगरेलियां मनाते हुए बिताते रहते हैं और जब वे इन कामों के लिए समय निकाल सकते हैं तो महिला मुख्य अधिकारी क्यों नहीं बच्चों के लिए समय निकाल सकतीं?