पहला भाग पढ़ने के लिए-जब मां-बाप करें बच्चों पर हिंसा
आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों को अनजान लोगों से खतरा हो सकता है जब कि अभिभावक और रिश्तेदारों के पास उन्हें सुरक्षा मिलती है. पर हमेशा ऐसा ही हो यह जरुरी नहीं. अभिभावक, देखभाल करने वाला शख्स, ट्यूशन देने वाले टीचर या फिर बड़े भाईबहन और रिश्तेदार, इन में से कोई भी बच्चों के साथ बदसलूकी यानी बाल उत्पीड़न कर उन्हें ऐसी चोट दे सकते हैं जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक सेहत और व्यक्तित्व के विकास में बाधक बन सकता है. ऐसी वजहें बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं. बच्चों के साथ इस तरह के उत्पीड़न कई तरह के हो सकते हैं;
शारीरिक उत्पीड़न का अर्थ उन हिंसक क्रियाओं से है जिस में बच्चे को शारीरिक चोट पहुँचाने, उस के किसी अंग को काटने, जलाने , तोड़ने या फिर उन्हें जहर दे कर मारने का प्रयास किया जाता है. ऐसा जानबूझ कर या अनजाने में भी किया जा सकता है. इन की वजह से बच्चे को चोट पहुंच सकती है, खून बह सकता है या फिर वह गंभीर रूप से बीमार या घायल हो सकता है.
भावनात्मक उत्पीड़न का अर्थ है अभिवावक या देखरेख करने वाले शख्स द्वारा बच्चे को नकार दिया जाना ,बुरा व्यवहार करना, प्रेम से वंचित रखना, देखभाल न करना और बातबेबात अपमान किया जाना आदि. बच्चे को डरावनी सजा देना, गालियां देना, दोष मढ़ना, छोटा महसूस कराना, हिंसक बनने पर मजबूर करना, जैसी बातें भी इसी में शामिल हैं. इन की वजह से बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो सकता है. उस का व्यक्तित्व प्रभावित हो सकता है और उस के अंदर हीनभावना विकसित हो सकती है.