रीना ने कॉल करके मुझे गृहप्रवेश का न्योता दिया. मैंने सोचा चलो वो ‘सेटल’ हो गई.अरे, कहीं आपका भी सेटल होने का मतलब “शादी”से तोनहीं. नहीं भई उसने अभी शादी नहीं की.ऐसा नहीं है कि उसे शादी से कोई समस्या है कर लेगी जब करना होगा. घरवालों का चलता तो 10 साल पहले ही उसकी शादी करवा दी होती. तब तो वो कॉलेज में थी, बड़ी जिद्द और मेहनत ने उसने खुद को सेटल किया है.
खैर, यह तो एक ऐसी लड़की की कहानी है जो जिसने आज एक मुकाम हांसिल कर लिया है. एक दूसरी कहानी है कोमल की, जिसकी शादी के 2 साल बाद ही उसके पति गुजर गए. अब वो अपने मायके आ गई, उसे लगा ये तो अपना घर है बाकी की जिंदगी यहीं बिता दूंगी अपनों के साथ. लेकिन हमारे समाज का खेल भी अनोखा है शादी से पहले जो घर की लाडली था वो अब उनके लिए उनके लिए कब बोझ बन गई उसे भी पता न चला. कभी इज्जत तो कभी धर्म के नाम पर मजबूरी ने उसे जकड़ लिया और उसकी पूरी जिंदगी ऐसे ही गुजर गई. उसके होने या ना होने से किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ता.
ये दो कहानियां इसलिए ताकि हम समझ सके कि कानून ने भले पिता की संपत्ति पर बेटियों का हक बराबर कर दिया, लेकिन असलियत क्या है सभी को पता है. दहेज के नाम पर लाखों का सौदा तो कर लेगें लेकिन प्रॉपर्टी पर बेटी का नाम कितने माता-पिता करते हैं...ये पिता की बात हो गई ससुराल में बहू के नाम पर कितने प्रॉपर्टी का हक दिया जाता है. हमारे समाज में कहा कुछ और जाता है और किया कुछ और...