मौत का सामना हर घर को करना पड़ता रहता है चाहे वह बीमारी से हो, अपराध के कारण हत्या से हो या दुर्घटना से. जहां पहले से मौत की आशंका हो, घर के लोग पहले से आपदा के लिए तैयार रहते हैं पर जहां दुर्घटना से मौत हो तो उसे अपराध के सामान हुई मौत माना जाता है, जिस में मरने वाली की अपनी खुद की कोई गलती नहीं थी. बालासोर, उड़ीसा में हावड़ा चैन्नई के बीच चलने वाली कोरोमंडल ‘ऐक्सप्रैस, बैंगलुरु हावड़ा सुपरफास्ट’ ऐक्सप्रैस और एक लोहे के खनिज से भरी गुड्स टे्रन की टक्कर में मरे 300 (जो बढ़ते जाएंगे क्योंकि 1000 लोग अस्पतालों में हैं) लोगों के परिवारों ने अगर जान खोई तो कोई न कोई गुनहगार है.
अफसोस यह है रोतेपीटते परिवारों में मौतों के लिए कोई अपनी गलती भी नहीं मानेगा. नाममात्र का मुआवजा दे कर, घटनास्थल पर दर्शन दे कर रेलों को हरी झंडी दिखाने वाले प्रधानमंत्री और रेलमंत्री अपने अपराधभाव से मुक्त हो जाएंगे घर के घर रोते रह जाएंगे जहां दूसरों की गलतियों से उन के घर के लोग मरे.
रंजिश में हुई हत्या, घर में तनाव के कारण हुई आत्महत्या, बीमार के कारण मौत पर सामने अपराधी खड़ा होता है. अगर बाहर का होता है तो उस पर मुकदमा चलता है. रोड ऐक्सीडैंट में अगर दूसरे की गलती से मौत होती है तो दूसरा या तो दुर्घटना में खुद भी मर कर मुआवजा देता है या उस पर जीवनभर मुकदमा चलता है.
यह रेल दुर्घटना ऐसी सामूहिक हत्या है जिस में मरने वालों के घर वालों को यह भी सांत्वना नहीं है कि अपराधियों को सजा मिलेगी. दिल्ली में 3 दशक पहले एक सिनेमाघर उपहार में आग में मरने वालों की बड़ी संख्या थी और सिनेमा मालिकों को बरसों जेल में काटने पड़े थे.