कालाधन, नकली नोट के खात्मे और आतंकियों की नाक में नकेल कसने के नाम पर नोटबंदी हुई. मोदी सरकार का यह कदम बहुतकुछ गले के टौंसिल का औपरेशन करते हुए गला ही काट दिए जाने सरीखा साबित हुआ. अगर पारंपरिक कहावत की बात करें तो हवन करते हुए हाथ जला लिया नरेंद्र मोदी ने, ऐसा कहा जा सकता है.
नोटबंदी नरेंद्र मोदी का फ्लौप शो साबित हो गया है. एक हद तक आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने संसद में वित्तीय मामलों की स्थायी समिति के आगे पूरी पोलपट्टी यह कह कर खोल कर रख दी कि केंद्र्र सरकार ने नोटबंदी के फैसले की सूचना आरबीआई बोर्ड को 7 नवंबर यानी घोषणा से महज एक दिन पहले दी थी. स्थायी समिति में आरबीआई गवर्नर की पेशी के बाद पुख्ता तौर पर साफ हो गया कि नोटबंदी का फैसला अकेले नरेंद्र मोदी का था.
नरेंद्र मोदी के इस खामखयाली फैसले से केवल मोदी का हाथ नहीं जला, बल्कि पूरा देश इस की तपिश झेल रहा है और न जाने कब तक झेलना पड़ेगा. अर्थशास्त्रियों के कयास तो अगले 5 से 10 साल के लिए हैं. अगर ये कयास सही हैं तो हमारा देश पिछले 10 सालों में अगर एक कदम आगे बढ़ा है तो नोटबंदी के फैसले के बाद महज 3 महीने में 2 कदम पीछे हो गया है.
अपने नाम का श्रेय लेने के भूखे नरेंद्र मोदी के लिए एक हद तक बदनाम हुए पर नाम तो हुआ जैसा भले हो, लेकिन उन की पार्टी और उस से भी अधिक देश की अर्थव्यवस्था व देश में हर तबके की जनता के लिए मोदी का यह फैसला बहुत पीड़ादायक रहा. देश तो क्या, देश का हर घर, हर शख्स अर्थव्यवस्था की पटरी पर वापस लौटने की अनिश्चितता के अंधकूप में समा गया है.