आपने फिल्मों में हीरो को हीरोइन के साथ गाते देखा होगा, ‘ये कालीकाली आंखें, ये गोरेगोरे गाल’ या ‘गोरेगोरे मुखड़े पे कालाकाला तिल’ या इसी तरह के और गाने जिन में नायिका का गोरा होना दिखाया जाता है अथवा किसी लड़के के लिए वैवाहिक विज्ञापन ही देखें- ‘वधू चाहिए, गोरी, स्लिम, सुंदर’ और यह उस की शैक्षणिक व अन्य योग्यताओं के अतिरिक्त होता है.
काले वर को भी गोरी वधू की प्राथमिकता है. मौडलिंग, टीवी सीरियल्स या फिल्मों में नायिकाओं और सैलिब्रिटीज का कुछ अपवादों को छोड़ कर गोरा और सुंदर होना अनिवार्य सा है. एक ही परिवार में अगर गोरी और काली दोनों लड़कियां हों तो काली या सांवली के मन में अकसर हीन भावना भर जाती है.बहुत सी लड़कियों को शादी में उन के डार्क कलर के चलते काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.काले या डार्क कलर से सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़कों को भी परेशानी होती है. उन में भी कुछ हद तक हीनभावना होती है.
कालिदास ने अपने काव्य में नायिकाओं के सांवले रंग को महत्त्व दिया है. कांबा रामायण में सीता को गोरी नहीं कहा गया है. कृष्ण या विष्णु भी गोरे नहीं कहे गए हैं. नेपाली रामायण में भी सीता को सांवली कहा गया है. जयदेव के गीत गोविंद की राधा सांवली है. पुराने जमाने में भी महिलाएं शृंगार करती थीं, पर प्राकृतिक साधनों दूध, मलाई, चंदन आदि से और ये सब गोरा दिखने के लिए नहीं, बल्कि स्किन ग्लो करने के लिए होता था. यह गोरेपन की बात हमारे दिमाग में कब आई?
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