देश में शिक्षा मंहगी होने लगी है. एक या दो बच्चे होने के कारण मांबाप सारी कमाई व बचत बच्चों की पढ़ाई पर लगाने लगे हैं. उन शातिरों की गिनती भी बढ़ रही है जो ऊंची शिक्षा दिलाने के नाम पर ठगी का धंधा कर रहे हैं. राजस्थान की विधानसभा में लगभग पारित होने वाले एक यूनिवर्सिटी के गठन के विधेयक को वापस लेना पड़ा जब पता चला कि जहां यूनिवर्सिटी के होने का दावा किया जा रहा था वहां तो जमीन एकदम खाली पड़ी थी.
किसी भी यूनिवर्सिटी के साथ गुरुकुल शब्द जुड़ा हो तो सब जांच करने वालों को भय लगने लगता है कि उस के पीछे अवश्य केंद्र सरकार का समर्थन होगा और फाइलों पर अनुमतियां मिलने लगती हैं. 80 एकड़ क्षेत्र में बनी होने का दावा की जाने वाली यूनिवर्सिटी की जमीन पर केवल घासफूस पाई गई.
यूक्रेन से लौटे 20,000 छात्र वैसे तो किसी ठग के शिकार नहीं थे पर यह दर्शाता है कि किस तरह गांवों के लोग भी जैसेतैसे पैसा जुटा कर बच्चों को न जाने कहांकहां पढऩे को भेज रहे हैं. काठमांडू में पढ़ रहे मैडिकल के छात्रों को पढ़ाई मृत शरीर पर नहीं, प्लास्टिक की डमी पर कराई जाती है. इस से साफ है कि ऐसे डिग्री पाने वाले डाक्टर कितनों को मारेंगे और आखिरकार पढ़ाई में लगा पैसा व्यर्थ जाएगा. यह ऐडमीशन मिलने के बाद की ठगी है, जो शिक्षा दिलाने के नाम पर जम कर की जा रही है.
शिक्षा जरूरी है पर इसे निजी हाथों में सौंप कर सरकार ने एक आफत खड़ी कर दी है. सरकारी शिक्षक आलसी, बेपरवाह होते हैं, इस में संदेह नहीं है, लेकिन उन में 10 में से 2-3 अच्छे निकल आते हैं. वे छात्रों के पैसे के बदले उन्हें बहुत काबिल बना देते हैं. ऐसे शिक्षकों को लोग जीवनभर याद रखते है. शिक्षा पर खर्च तो बराबर ही होगा, चाहे सरकारी हो या निजी, पर सरकारी शिक्षा में पैसा करदाता के माध्यम से आएगा, सो, लूट के चांस नहीं होंगे.