पितृसत्तात्मक समाज की चालाकी और लालच आज भी महिलाओं का अस्तित्व उस के शरीर से आगे स्वीकार करने को तैयार नहीं है और उस की देह पर अपना कब्जा जमाए रखने के लिए वह औरत को कपड़ों की जकड़ व आभूषणों की बेडि़यों में कसे रखना चाहता है. इन बेडि़यों को काटे बिना औरत की गति नहीं है. इस षड्यंत्र को समझना और इस से मुक्त होने के रास्ते औरत को ही निकालने होंगे.
अकसर देखा गया है कि किसी बिल्ंिडग में आग लगने पर हताहतों की संख्या में औरतों की संख्या मर्दों से ज्यादा होती है क्योंकि वे अपने कपड़ों के कारण जल्दी भाग नहीं पातीं, पुरुषों की तरह तीनतीन सीढि़यां फलांग कर उतर नहीं पातीं. खिड़की के रास्ते कूद नहीं पातीं. उन के लबादेनुमा कपड़े इस में बाधक बन जाते हैं. उन की साड़ी या दुपट्टा आग पकड़ लेता है और वे उस आग में घिर कर झुलस जाती हैं या मर जाती हैं.
दुर्घटना के वक्त ज्यादातर औरतों के कपड़े ही उन की जान जाने का कारण बनते हैं. इस के उलट मर्द जोकि पैंट या निक्कर में होते हैं, तेजी से बच कर भाग निकलते हैं. पैंट, जिस में चलनाफिरना आसान है, लगातार पहनते रहने के कारण उन को आदत होती है तेज चलने या भागने की, लिहाजा वे तेजी से सीढि़यां फलांग लेते हैं, खिड़कियों से कूद जाते हैं. वहीं सलवारकुरता या साड़ी में औरतों को धीमे चलने की ट्रेनिंग यह समाज देता है, लिहाजा दुर्घटना के वक्त भी उन के पैरों में गति नहीं आ पाती, और दूसरी ओर उन के पहने गए कपड़े भी रुकावट पैदा करते हैं. ऐसे समाचार भी अकसर सुनने को मिल जाते हैं कि बाइक या स्कूटर पर पीछे बैठी महिला का दुपट्टा उस के गले और बाइक के टायर के बीच फंस कर उस की मौत का कारण बन गया.