मार्क ट्वेन ने अपनी एक कविता ‘युद्ध भूमि में प्रार्थना’ में लिखते हैं भगवान से पहले युद्ध के समय दोस्त काम आते हैं और भगत सिंह समाजवादी दर्शन की विवेचना करते हुए कहते हैं, ‘किसी भी इज्म से, दर्शन से, बड़ा फलसफा है दोस्ती का.’ शायद यही वजह है कि चाहे दुनिया पहिए से राॅकेट युग में पहुंच गई हो; लेकिन दोस्ती की संवेदना में, दोस्ती की भावना में जरा भी फर्क नहीं आया.

समाज विज्ञान का इतिहास लिखने वाले समाजशास्त्री कहते हैं, ‘दुनिया का सबसे पहला रिश्ता दोस्ती का था.’ आदमी जब अपने आपको जानवरों से अलग किया तो उसे जिस नजदीकी रिश्ते के बोध ने जानवरों से अलग किया और बाद में आज तक के सफर का हमसफर बनाया वह बोध, दोस्ती का ही था. यह अलग बात है कि वह दोस्ती सहयोग और फायदे का सौदा थी. जब इंसान ने अपने को जानवरों से अलग किया तो उसके दिमाग में यह विचार आया कि आखिर वह कौन सा तरीका हो सकता है जिससे जानवरों से बचा जा सकता है और तब इस बात पर आकर दिमाग रुका कि अगर आदमी आपस में एकजुट होकर रहें तो जानवरों का सामना आसानी से किया जा सकता है. दोस्ती की यही बुनियाद थी जो बाद में विकसित होते-होते तमाम भावनात्मक एवं संवेदनात्मक सीढ़ियों को चढ़ते हुए आज यहां तक पहुंची है कि कुछ लोगों के लिए दोस्ती से बड़ा दुनिया में कोई रिश्ता नहीं है.

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महान विचारक मार्क्स के बारे में एंगेल्स ने लिखा है कि उन्हें दो ही लोग विचलित कर सकते थे या तो उनकी पत्नी जेनी जो पत्नी से ज्यादा दोस्त थीं और खुद एंगेल्स जिनकी दोस्ती मार्क्स के साथ वैसी ही थी जैसे महाभारत में कर्ण और दुर्याेधन की दोस्ती. मजे की बात यह है कि दुनिया में जितना साहित्य रचा गया है, उसमें सबसे ज्यादा साहित्य दोस्ती पर ही है. चाहे दोस्त की महानता पर हो, दोस्त के त्याग पर हो या फिर दोस्ती के विश्वासघात पर. दुनिया के तमाम महानग्रंथ दोस्तों के त्याग और दोस्ती में हुए छल कपट के ही ब्यौरे हैं. होमर का ओडेसी, कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास का महाभारत सबके सब दोस्ती की जय व विजय गाथाओं के ब्यौरे हैं.

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