लोकसभा में अगर द मैरिज (कंपल्सरी रजिस्ट्रेशन ऐंड प्रिवैंशन औफ वैस्टफुल एक्सपैंडीचर) विधेयक 2016 पारित हो पाया तो नोटबंदी के बाद अब आम लोगों को नई परेशानियां झेलनी होंगी. बड़े जोशोखरोश से इस विधेयक का मसौदा कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन यादव ने तैयार किया है.
यह मसौदा दिलचस्प भी है और चिंतनीय भी. इस मसौदे से जाहिर होता है कि सस्ती वाहवाही लूटने के चक्कर में हमारे माननीय एकदूसरे से पिछड़ना नहीं चाहते. वे इस बाबत कानून के ऐसेऐसे खाके खींच रहे हैं जिन्हें देख सिर पीट लेने की इच्छा होने लगती है कि कानून आखिर न्याय के लिए हैं या आम लोगों की रोजमर्राई जिंदगी दुश्वार बनाने के लिए. रंजीत रंजन का उत्साह बेवजह नहीं है. दरअसल, नोटबंदी की मार और परेशानियों को आम लोगों ने सब्र से झेल लिया है तो अब हर नेता अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा कर जता रहा है कि समाज और देश के लिए क्या अच्छा होगा.
यह है मसौदा
प्रस्तावित विवाह कानून के मसौदे में घोषित मंशा शादियों में फुजूलखर्ची रोकने की है. बकौल रंजीत, इस विधेयक का मकसद सादगीपूर्ण शादियों को बढ़ावा देने का है. इस से शादियों में किया जाने वाला बेवजह का खर्च रुकेगा. लोग शादियों पर पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं, इस से गरीब लोगों पर ज्यादा खर्च करने का दबाव बढ़ता है.
संसद पहुंच कर एकाएक ही ज्ञानी हो गईं रंजीत के पास आइडियों की भरमार है. चूंकि कह देने मात्र से लोग मानेंगे नहीं, इसलिए इस में उन्होंने जोड़ा है कि अगर कोई परिवार शादी में 5 लाख रुपए से ज्यादा की राशि खर्च करता है तो उस परिवार को इस की घोषणा सरकार के सामने करनी होगी और राशि का 10 फीसदी हिस्सा संबंधित कल्याण कोष में देना होगा. ये वे कल्याण कोष हैं जो सरकार द्वारा गरीबों की मदद के लिए बनाए जाते हैं.