लेखक- संजय रोकड़े
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाखंड की नीतियों को अमलीजामा पहनाने के लिए जिस तरह से आक्रामक होकर अपने कानून बदलें अंजाम उनका असर दूसरे देशों पर भारत के खिलाफ जाता लिखने लगा है.
भारत का हर बड़ा शहर, पिछले दिसंबर में नरेन्द्र मोदी सरकार की उस नागरिकता कानून का विरोध कर रहा था जो उपर से तो लगा रहा था कि सबको नागरिकता देने का कानून है लेकिन इसके पीछे विदेशी हिंदूओं को रियायत देकर भारत में बसाने की रणनीति काम कर रही थी जो आरएसएस की नीति का एक हिस्सा थी. इससे बांग्लादेश और अफगानिस्तान भी नाराज से हुए क्योंकि उन पर कानून से माइनौरिटीज को तंग करने का आरोप लगा दिया गया.
इस नागरिकता कानून का उलटा असर हमारे पड़ोसी हिंदू राष्ट्र नेपाल में भारतीय बेटियों पर मुसीबत के रूप में सामने आ रहा है. हमारे पीएम ने जिस तरह से हिंदू-हिंदूत्व और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को एक उकसावे के रूप में बढ़ावा दिया था अब उसके परिणाम हमारे ही गैर भारतीय लोगों की मुसीबत के रूप में आने लगे है.
ये भी पढ़ें- क्या भारत तीन मोर्चों पर जंग लड़ सकता है?,‘मोदी डाक्ट्रिन’ की यह अग्निपरीक्षा है
नेपाल ने भी अब नागरिकता कानून में बदलाव किया है. नेपाल के गृहमंत्री राम बहादुर थापा ने साफ कहा कि बदलाव विशेष कर भारतीयों द्वारा नेपाल की नागरिकता पाने के संदर्भ में किया गया है. उन्होंने भारतीय कानून का हवाला देते हुए कहा कि जिस तरह से भारत में किसी विदेशी नागरिकता वाले व्यक्ति को किसी भारतीय से शादी करने के सात साल बाद ही नागरिकता दी जाती है उसी तरह से नेपाल में भी किया जा रहा है.