ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी के पास ‘स्मैश ब्राह्मिकल पैट्रिआर्की’ विवाद के नाम पर जन्मजात पंडागिरी का विरोध करने का जो मौका मिला था और दुनिया भर में बदलाव का सन्देश देने का एक ऐतिहासिक मौका था, जो उन्होंने गंवा दिया. वे खुद को एक बिज़नेसमैन के इतर एक जागरूक और सामाजिक सरोकारी के तौर पर स्थापित कर सकते थे. वे जातिवर्ण भेदभाव, धार्मिक कुरीतियों और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के खिलाफ एक नया आंदोलन व विमर्श की लहर पैदा कर सकते थे. लेकिन अफसोस कि उन्होंने धर्म को धंधे से जोड़कर वही किया जो सदियों से धर्म, जाति, रीति और वेदों के नाम पर भेदभाव करने वाले करते आये हैं. इस विवाद पर उनका माफीनामा ब्राह्मणवादी सोच रखने वालों की ज्यादतियों को जस्टीफाई करने का भ्रामक संदेश देता है.
क्या है पूरा विवाद ?
यह सारा विवाद एक पोस्टर/तस्वीर (प्लेकार्ड) को लेकर है. जिस पर लिखा था, स्मैश ब्राह्मिकल पैट्रिआर्की यानी ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को तोड़ डालो. चूंकि पिछले हफ्ते डोर्सी भारत दौरे पर आए थे. इस दौरे में उन्होंने भारत के ट्विटर अनुभव डिस्कस करने के लिए एक मीटिंग रखी और इस बैठक में कई महिलाएं शामिल हुईं जो महिला अधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार और लेखिकाएं थीं. इसी मीटिंग के बाद कुछ दलित कार्यकर्ता उन्हें एक पोस्टर देते हैं. जिसे लेकर वे ग्रुप फोटो में दिख रहे हैं. इस पोस्टर पर लिखा है स्मैश ब्राह्मिकल पैट्रिआर्की.
इस ततस्वीर को एक पत्रकार ने जैसे ही सोशल मीडिया में शेयर किया. ब्राह्मणवादी सोच के अगुवाओं ने जैक डोर्सी और ट्विटर के खिलाफ वही जहर उगला जो वे भारत में दलित चिंतकों या वंचितों के लिए आवाज उठाने वालों के खिलाफ उगलते हैं. उन पर लेफ्ट रुझान रखने वालों को बुलाने और ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाया गया. इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टी वी मोहनदास पई ने तो डोर्सी पर ब्राह्मणों के खिलाफ घृणा फैलाने और नफरत को संस्थागत स्वरूप देने का आरोप लगाया. अफसोस यही है कि दलितों और उदार बुद्धिजीवियों के ट्वीट उतनी संख्या में नहीं दिखे. कौन जाने ट्विटर के एलगोरिथम में उनका सफाया हुआ या दबे कुचले पिछड़े, ओबीसी व दलित समझ ही नहीं पाए कि क्या हो रहा है.