अब अमित को जब इच्छा होती, मंजरी के पास चला आता. उस की बच्ची के लिए वह परिवार का सदस्य हो गया था. वैसे भी वह अबोध थी. अमित के लिए मंजरी का घर अनजाना नहीं रहा. जब भी वह आता, मंजरी और उस की बच्ची की जरूरतों के हिसाब से घरगृहस्थी का सामान खरीदते हुए आता.
मंजरी मना करती तो कहता, ’’क्या मैं तुम्हारे लिए गैर हूं?’’
इस के आगे मंजरी को कोई जवाब नहीं सूझता.
अमित शालिनी के साथ खूब मस्ती करता. यह देख कर मंजरी आह्लादित थी. मंजरी को पूरा विश्वास था कि अमित से शादी हो जाएगी, तो शालिनी को उसे पिता के रूप में अपनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी. यही तो सब से बड़ी समस्या थी, जिस की वजह से वह शादी से कतराती थी. पिता के न रहने पर शालिनी कितने सवाल करती थी.
मंजरी को समझ में नहीं आता कि कैसे उसे रास्ते पर लाए. ऐसे में अमित का आना मांबेटी के लिए किसी वरदान से कम नहीं था.
आहिस्ताआहिस्ता एक साल गुजर गया. दोनों के संबंध पतिपत्नी की तरह बन गए थे. एक रोज फ्लैट की एक पड़ोसन ने अमित के बारे में मंजरी से सवाल किया, जिसे सुन कर उसे अच्छा न लगा.
उस रात जब वे दोनों हमबिस्तर थे, तब मंजरी ने इस घटना की चर्चा की.
‘‘तुम बेकार लोगों की बातों पर गौर करती हो? जैसे ही तलाक मिलेगा, मैं तुम से शादी कर के इन लोगों के मुंह पर तमाचा मार दूंगा.’’
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