अमित निरूत्तरित था. उस रोज किसी तरह वह मंजरी के सवालों से बच कर निकल आया. घर में उस का मन विचलित था. मंजरी की मनोदशा देख वह अंदर ही अंदर भयभीत था. उसे सपने में भी भान नहीं था कि मंजरी शादी को ले कर इतना संजीदा है. वह तो अब तक इस रिश्ते को ले कर सहज था. मंजरी तनहा थी. उसे एक पुरुष साथी की जरूरत थी. उस की कमी उस ने पूरी की. इसी का नतीजा था, जो उस के फूल से मुरझाए चेहरे पर ताजगी आई. उस की वीरान जिंदगी में बहार की रंगत बिखरी, वरना अब तक उस ने बेहद उदास वक्त गुजारा. आज मंजरी की हालत ऐसी हो गई थी कि वह उस की गैरमौजूदगी की कल्पना से ही डर जाती. वह भरसक चाहती कि जितनी जल्दी उन दोनों की शादी हो जाए, ताकि असुरक्षित जिंदगी से छुटकारा मिल सके. एक अकेली स्त्री के लिए जीवन काटना इतना आसान नहीं होता. उस पर एक बेटी की मां. जिस की सुरक्षा उसे हर वक्त चिंतित किए रहती. पति का साया मिलेगा तो लोगों को तरहतरह की बातें बनाने का मौका नहीं मिलेगा.
2 दिन तक अमित उस के पास नहीं आया. मंजरी को लगा कि वह उस से नाराज है. जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उसे इस बात के लिए बेहद अफसोस हुआ कि क्यों बिना वजह अमित पर तोहमत लगाई. हो सकता है कि वह जो कह रहा है सही हो.
उस ने अमित को फोन लगा कर माफी मांगनी चाही. मगर, उस ने उठाया नहीं. बारबार स्विच औफ के संकेत मिल रहे थे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. तो क्या अमित उस से अपने अपमान का बदला ले रहा है? सोच कर वह सिहर गई. मन आशंकाओं से घिर गया. वह अपनेआप को दोषी मानने लगी.