पत्र सुनते ही वे सन्न रह गए. उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था.
‘‘ऐसे कैसे हो सकता है?’’ उपासना फट पड़ी, ‘‘हम अपने पापा के बच्चे हैं, ये दोनों
कौन हैं? कहां से आए? मुझे तो पहले ही शक था कि दाल में कुछ काला है... और नूरां की बच्ची चरित्रहीन औरत, पापा को फंसा कर सब हड़प लिया...’’
तभी उस का पति आनंद भी आ कर वार्त्तालाप में शामिल हो गया, ‘‘हमें तो पहले ही शक था... घर में मालकिन बनी घूमती थी जैसे सब उसी का हो.’’
अतुल को तो बहुत गुस्सा आ रहा था. पापा ने पिता होने का कर्तव्य केवल खर्चा दे कर ही निभाया, कभी उस के स्कूल नहीं आए, कभी उस के किसी भी खेल, क्रियाकलाप में हिस्सा नहीं लिया... ठीक है, मौम के साथ उन की नहीं पटी और मौम ने भी उन से अलग होने की बड़ी रकम वसूल की थी, पर इस में उस का क्या अपराध था? वह तो उन का बेटा था, खून था. उस की सारी योजनाओं पर पानी फिर चुका था. यह जो उस के साथ हो रहा था इस की उस ने कल्पना भी न की थी.
‘‘नूरां... नूरां...’’ उपासना ने लगभग चीखते हुए आवाज दी.
‘‘जी बेबीजी,’’ नूरां हाजिर थी.
‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं... क्या तुझे पता था कि पापा ने इतनी सारी जायदाद तेरे नाम की है? हां पता तो होगा. तभी किसी रिश्ते के बगैर दिनरात यहां पड़ी रहती थी,’’ उपासना उबल
रही थी.
‘‘जी बिलकुल नहीं बेबीजी,’’ नूरां की आंखों में आंसू थे, ‘‘आप यह क्या कह रही हैं? मुझे तो आप के मुंह से पता चला है. अभीअभी... हमारी इतनी औकात कहां. हम तो सपने में भी नहीं सोच सकते ये सब.’’