कहानी- डौ. अनीता एम. कुमार
नियत समय पर घड़ी का अलार्म बज उठा. आवाज सुन कर मधु चौंक पड़ी. देर रात तक घर का सब काम निबटा कर वह सोने के लिए गई थी लेकिन अलार्म बजा है तो अब उसे उठना ही होगा क्योंकि थोड़ा भी आलस किया तो बच्चों की स्कूल बस मिस हो जाएगी.
मधु अनमनी सी बिस्तर से बाहर निकली और मशीनी ढंग से रोजमर्रा के कामों में जुट गई. तब तक उस की काम वाली बाई भी आ पहुंची थी. उस ने रसोई का काम संभाल लिया और मधु 9 साल के रोहन और 11 साल की स्वाति को बिस्तर से उठा कर स्कूल भेजने की तैयारी में जुट गई.
उसी समय बच्चों के पापा का फोन आ गया. बच्चों ने मां की हबड़दबड़ की शिकायत की और मधु को सुनील का उलाहना सुनना पड़ा कि वह थोड़ा जल्दी क्यों नहीं उठ जाती ताकि बच्चों को प्यार से उठा कर आराम से तैयार कर सके.
मधु हैरान थी कि कुछ न करते हुए भी सुनील बच्चों के अच्छे पापा बने हुए हैं और वह सबकुछ करते हुए भी बच्चों की गंदी मम्मी बन गई है. कभीकभी तो मधु को अपने पति सुनील से बेहद ईर्ष्या होती.
सुनील सेना में कार्यरत था. वह अपने परिवार का बड़ा बेटा था. पिता की मौत के बाद मां और 4 छोटे भाईबहनों की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. चूंकि सुनील का सारा परिवार दूसरे शहर में रहता था अत: छुट्टी मिलने पर उस का ज्यादातर समय और पैसा उन की जरूरतें पूरी करने में ही जाता था, ऐसे में मधु अपनी नौकरी छोड़ने की बात सोच भी नहीं सकती थी.