लेखिका- बिभा रंजन
छवि को मां की याद आती है, उस के कारण उस की मां को लज्जित होना पड़ा. छवि का मन ग्लानि से भर जाता है. वह ठान लेती है, इस बच्ची की मदद वह जरूर करेगी. समय के साथ प्रृशा धीरेधीरे छवि से बहुत घुलनेमिलने लगती है. प्रृशा के कारण छवि माहेश्वरी से भी थोड़ा खुलने लगी थी. वह हंसमुख और स्पष्ट वक्ता है. प्रृशा बीमारी में बिस्तर गीला करने लगी थी, इसी कारण वह अपने पिता से अलग सो रही थी. दुष्प्रभाव का यह भी एक बड़ा कारण था. जैसेजैसे प्रृशा ठीक हो रही थी, सारी गलत चीजें अपनेआप हटती जा रही थीं.
माहेश्वरी के स्टाफ थोड़े जिद्दी एवं हठी लगे. मना करने के बावजूद पृशा की निजी आया चानी को रसोई में लगा देते थे. चानी पृशा के साथ खुब घुली और पृशा उस से ही काम करवाना पसंद करती थी. छवि के मना करने पर भी जब वे बाज नहीं आए, तब छवि को लगा इस विषय पर माहेश्वरी से ही बात करनी होगी. उस ने इंटरकौम में माहेश्वरी के पर्सनल नंबर से बताया, बात करनी है. माहेश्वरी ने कहा कि वह उन का स्टडीरूम में इंतजार करे. छवि सुतपा की सहायता से स्टडीरूम में पहुंच कर माहेश्वरी का इंतजार करने लगी.
कमरे में शीशे की आलमारियों में किताबें सजी थीं. माहेश्वरी परिवार को पढ़ने का शौक है. बहुत देर इंतजार करने के बाद जब माहेश्वरी नहीं आए तब उसे गुस्सा आने लगा. बड़े लोग पैसे कमाने में इतने ब्यस्त रहते हैं, इन्हें अपने बच्चे की भी फिक्र नहीं होती है. मैं उन की बच्ची के बारे में बात करने आई हूं, पर इन का ध्यान तो पैसा कमाने पर है. वह गुस्से से उठ खड़ी हुई. उस ने गुस्से से कुरसी पीछे ढकेला और मुड़ी. उसे पता भी न चला कि कब उस का पैर बुरी तरह मुड़ गया. वह गिरने वाली थी कि किसी की मजबूत बांहों ने उसे संभाल लिया.