धीरेधीरे एकदूसरे की तरफ 1-1 पांव चलते वे दोनों अब काफी नजदीक आ चुके थे. बस, इस रिश्ते को स्वीकार करने की औपचारिकता भर शेष थी. वह भी पिछले वैलेंटाइन पर कदम ने पूरी कर दी थी.
प्यार के इजहार के बाद अब दीप्ति कदम के फ्लैट पर भी बेरोकटोक जाने लगी थी. हालांकि कदम उदयपुर का ही मूल निवासी था लेकिन उस का परिवार गुलाबपुरा में रहता था इसलिए दीप्ति के लिए कभी भी बिना समय देखे कदम के फ्लैट पर जाना बहुत आसान था.
एकांत और मनपसंद साथी का साथ... ये दोनों परिस्थियां किसी को भी बहकाने के लिए पर्याप्त होती हैं तिस पर यदि साथी का अपना बनना निश्चित हो तो फिर यह परिस्थिति किसी भी प्रतिक्रिया में उत्प्रेरक का काम करती है. ऐसी ही परिस्थिति आज दीप्ति और कदम के बीच बन गई थी.
मार्च महीने के पहले शनिवार यानी वीकेंड की गुलाबी सी दोपहरी और लंच के बाद का अलसाया सा समय... भारी खाने के बाद कदम बिस्तर पर लेट गया. दीप्ति भी वहीं पसर गई. ऐसी कि ठंडी हवा ने जल्दी ही दोनों की पलकों को अपने कब्जे में ले लिया. नींद के किसी पल में दीप्ति की बांह कदम के सीने पर आ लगी और उस का मुंह उस की कांख में. कदम की आंखें खुलीं और उस ने अंगङाई लेते हुए अपनी बांहें दीप्ति के इर्दगिर्द लपेट लीं. अभी उस के होंठ दीप्ति के चेहरे की तरफ बढ़े ही थे कि वह कसमसाई.
"प्लीज कदम, शादी तक रुको," दीप्ति ने उसे रोका लेकिन हवाएं एक बार चल निकलें तो फिर आंधी बनते देर कहां लगती है. कदम के तन और मन में भावनाओं की आंधी उठने लगी थी.