वह दोनों करीब 2 घंटे बाद लौटे. डाक्टर ने अंजलि को उलटियां बंद करने का इंजेक्शन दिया था. वह कुछ बेहतर महसूस कर रही थी. इसी कारण उस की नाराजगी और शिकायतें लौटने लगीं.
‘‘बूआ, यह सब लोग 3 घंटे से कहां गायब हैं?’’ उस ने नाराजगी भरे लहजे में अपने भाई व भाभियों के बारे में सवाल पूछा.
‘‘वे सब सीमा की बड़ी बहन के घर चले गए हैं,’’ मैं ने उसे सही जानकारी दे दी.
‘‘क्यों?’’
‘‘मेरे खयाल से सीमा का मूड ठीक करने के इरादे से.’’
‘‘और मैं यहां मर रही हूं, इस की किसी को चिंता नहीं है,’’ वह भड़क उठी, ‘‘अपने घर वाले मस्ती मारते फिरें और एक बाहर का आदमी मुझे डाक्टर के पास ले जाए...मेरे लिए दवाइयां खरीदे... मारामारा फिरे...क्या मैं बोझ बन गई हूं उन सब पर? और आप क्यों नहीं हमारे साथ आईं?’’
मैंने विषय बदलने के लिए आक्रामक रुख अपनाते हुए जवाब दिया, ‘‘अंजलि, जो तुम्हारे सुखदुख में साथ खड़ा है, उस नेकदिल इनसान को बाहर का आदमी बता कर उस की बेइज्जती करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है.’’
मेरा तीखा जवाब सुन कर अंजलि पहले चौंकी और फिर परेशान नजर आती राकेश से बोली, ‘‘आई एम सौरी. गुस्से में मैं गलत शब्द मुंह से निकाल गई.’’
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‘‘इसे आसानी से माफ मत करना, राकेश. मेरी कोई बात नहीं सुनती है यह जिद्दी लड़की. इसे माफी तभी देना जब यह तुम्हारे कहने से कुछ खा ले. मैं तुम दोनों का खाना यहीं लाती हूं,’’ अंजलि से नजरें मिलाए बिना मैं मुड़ी और कमरे से बाहर निकल कर रसोई में आ गई.