सावित्री को नींद नहीं आ रही थी. अभी पिछले साल ही उस के पति की मौत हुई थी. उस की शादीशुदा जिंदगी का सुख महज एक साल का था. सावित्री ससुराल में ही रह रही थी. उस का पति ही बूढ़े सासससुर की एकलौती औलाद था. ससुराल और मायका दोनों ही पैसे वाले थे. सावित्री अपने मायके में 4 बच्चों में सब से छोटी और एकलौती लड़की थी. मांबाप और भाइयों की दुलारी... मैट्रिक पास होते ही सावित्री की शादी हो गई थी. पति की मौत के बाद उस का बापू उसे लेने आया था, पर वह मायके नहीं गई. उस ने बापू से कहा था कि आप के तो 3 बच्चे और हैं, पर मेरे सासससुर का तो कोई नहींहै. पहाड़ी की तराई में एक गांव में सावित्री का ससुराल था. गांव तो ज्यादा बड़ा नहीं था, फिर भी सभी खुशहाल थे. उस के ससुर उस इलाके के सब से धनी और रसूखदार शख्स थे. वे गांव के सरपंच भी थे.
पहाडि़यों पर रात में ठंडक रहती ही है. थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी. सावित्री कंबल ओढ़े लेटी थी, तभी अचानक ही जोर के धमाके की आवाज से वह चौंक पड़ी थी.
वह बिस्तर से नीचे उतर आई. शाल से अपने को ढकते हुए बगल में सास के कमरे में गई. वहां उस ने देखा कि सासससुर दोनों ही जोरदार धमाके की आवाज से जाग गए थे.
उस के ससुर स्वैटर पहन कर टौर्च व छड़ी उठा कर बाहर जाने के लिए निकलने लगे, तो सावित्री ने कहा, ‘‘बाबूजी, मैं आप को रात में अकेले नहीं जाने दूंगी. मैं भी आप के साथ चलूंगी.’’