उधर शैली के बिना न तो विवान का घर में मन लग रहा था और न ही औफिस में. हर वक्त उस के ही खयालों में खोया रहता था. विवान के मन की बात उस के दोस्त अमन से छिपी न रह पाई. पूछा, ‘‘क्या बात है बड़े देवदास बने बैठे हो? लगता है भाभी के बिना मन नहीं लग रहा है? अरे, तो चले जाओ न...’’
अमन की बातें सुन विवान अपनेआप को वहां जाने से रोक न पाया. ‘‘लो आ गए मजनूं... क्यों, रहा नहीं गया अपनी लैला के बिना? विवान को आए या देख शैली की छोटी भाभी ने चुटकी लेते हुए कहा.
अचानक विवान को अपने सामने देख, पहले तो शैली का दिल धक्क से रह गया. ऊपर से उस की भाभी का यह कहना उस के तनबदन को आग लगा गया. विवान को घूर कर देखा. गुस्से से उस की आंखें धधक रही थीं. यह भी न सोचा कि मेहमानों का घर है तो कोई सुन लेगा. कर्कशा आवाज में कहने लगी, ‘‘जब मैं ने तुम से बोल दिया था कि जल्दी आ जाऊंगी तो क्या जरूरत थी यहां आने की? क्या कुछ दिन चैन से अकेले जीने नहीं दे सकते?’’
झेंपते हुए विवान कहने लगा, ‘‘न... नहीं शैली ऐसी बात नहीं है. वह क्या है कि छुट्टी मिल गई तो सोचा... और वैसे भी तुम्हारे बिना घर में मन ही नहीं लग रहा था तो आ गया.’’
‘‘मन नहीं लग रहा था तो क्या मैं तुम्हारा मन लगाने का साधन हूं? अरे कैसे इंसान हो तुम जो अपना कामकाज छोड़ कर मेरे पीछे पड़े रहते हो? मैं पूछती हूं तुम में स्वाभिमान नाम की कोई चीज है या नहीं... जताते हो कि तुम मुझ से बहुत प्यार करते हो... अरे, नहीं चाहिए मुझे तुम्हारा प्यार... सच में उकता गई हूं मैं तुम से और तुम्हारे प्यार से. जानते हो मैं यहां क्यों आई? ताकि कुछ दिनों के लिए तुम से छुटकारा मिले, पर नहीं, तुम्हारे इस छिछले व्यवहार के कारण मेरी सारी सहेलियां और भाभियां मुझ पर हंसती हैं. कहती हैं... जाने दो तुम से तो कुछ बोलना ही बेकार है. अब जाओ यहां से, मुझे जब आना होगा खुद ही आ जाऊंगी समझे?’’ अपने दोनों हाथ जोड़ कर शैली चीखते हुए बोली.