‘‘औ... औ... औ...’’ अरुंधती की आंख खुली तो किसी के ओकने की आवाज सुन कर एकाएक विचार मस्तिष्क में कौंधा, ‘क्या श्यामली को उलटियां हो रही हैं.’ तत्काल ही बिस्तर छोड़ वह बाहर की ओर लपकी. बाहर जा कर देखा तो श्यामली पौधों को पानी दे रही थी. ‘‘क्यों रे श्यामली, अभी तू उलटी कर रही थी?’’ श्यामली चौंक कर, ‘‘जी मैडमजी.’’ अरुंधती श्यामली के कुछ और पास आ कर मुसकराई और भौंहें उठा कर शरारती अंदाज में बोली, ‘‘क्या बात है श्यामली, कोई खुशखबरी है क्या?’’ श्यामली कुछ न बोली. दोनों हाथों से मुंह छिपा कर ऐसे खड़ी हो गई मानो शर्म के मारे अभी जमीन में गड़ जाएगी.
अरुंधती को बात सम झते देर न लगी, ‘‘श्यामली, यह तो बहुत ही खुशी की बात है. अब तू सुन, आज से तू कोई भारी काम नहीं करेगी और अपने खानपान पर पूरा ध्यान देगी. और सुन, रमिया कहां है, सो रहा है क्या? बुला उस को. मैं आज उस की खबर लेती हूं. अब सारे काम वही करेगा, तू सिर्फ आराम करेगी, सम झी?’’ अरुंधती के चेहरे पर खुशी, चिंता और उतावलेपन का मिलाजुला भाव था. श्यामली शरमा कर वहां से दौड़ गई. अरुंधती ने हाथ को ऐसे उठाया मानो कह रही हो ‘आराम से, थोड़ा हौलेहौले चल श्यामली, जरा संभल कर.’ शादी के 12 साल बीत चुके थे. अरुंधती की ममता तृषित थी. उस की बगिया में कोई फूल नहीं खिल सका. रहरह कर अतृप्त मातृत्व सूनी कोख में टीस मारता था. सभी कोशिशें कर लीं,
सभी अच्छे से अच्छे डाक्टर, बड़ेबड़े पंडितवैद्य, तांत्रिक और ओ झा से संपर्क किया लेकिन प्रकृति उस की गोद में संतान डालना भूल गई थी. अरुंधती को पौधों से बहुत ही प्यार था. वह पौधों की देखभाल ऐसे करती थी मानो वे उस के अपने बच्चे हों या फिर कह सकते हैं कि, जो ममता, जो वात्सल्य उस में उबलउबल कर बाहर छलकता था वही स्नेह वह इन पौधों पर छिड़क कर अपनी ममता की प्यास शांत करती थी. रमिया उस के यहां माली का काम करता था, बहुत छुटपन से वह अरुंधती के पास था. अरुंधती को उस से बहुत लगाव था. उस ने रमिया के रहने के लिए घर के पीछे एक छोटा सा क्वार्टर बनवा दिया था. रमिया अरुंधती का बहुत ध्यान रखता था और खासकर उस की बगिया का. उसे मालूम था कि इन पौधों में मैडमजी की जान बसती है. सो, वह उन की देखभाल में कोई कसर न छोड़ता था.