एक दिन डा. अमन ने नीरा को समझाया, ‘‘खुदगर्ज लोगों के लिए क्यों अपने तन और मन को कष्ट दे रही हैं, जो एक दुर्घटना की खबर सुन कर आप से दूर हो गए. अच्छा हुआ ऐसे खुदगर्ज लोगों से आप का रिश्ता पक्का न हुआ.’’
इस के बाद नीरा अमन को अपना मित्र समझने लगी. वह अमन के आने का बेसब्री से इंतजार करती. अब वह अमन को अपने नजदीक पाने लगी थी. अमन अपने फुरसत के लमहे नीरा के कमरे में बिताता. राजनीति, सामाजिक समस्याओं, फिल्मों, युवा पीढ़ी आदि के बारे में खुल कर बहस होती. अमन का ऐसे रोजरोज बेझिझक आना और बातें करना नीरा के दिल पर लगी चोट को कम करने लगा था.
प्लस्तर खुलने में अब कुछ ही दिन बचे थे. नीरा के घर सूचना भेज दी गई थी. अमन जब नीरा के कमरे में गया तो वह एकाएक अमन से पूछने लगी, ‘‘क्या आप मुझे कोई छोटीमोटी नौकरी दिलवा सकते हैं?’’
अमन ने कारण पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं अब घर नहीं जाऊंगी.’’
अमन यह सुन कर हैरान रह गया. अमन ने बहुत समझाया कि छोटीछोटी बातों पर घर नहीं छोड़ देते हैं, पर नीरा ने एक न सुनी.
वह बोली, ‘‘डा. अमन, मैं सिर्फ आप पर भरोसा करती हूं, आप को अपना समझती हूं. आप मेरे लिए कुछ कर सकते हैं? मैं इस समय आप की शरण में आई हूं.’’
अमन गहरी उलझन में पड़ गया. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप का बीए का रिजल्ट तो अभी आया नहीं है. हां, कुछ ट्यूशन मिल सकती है, परंतु तुम रहोगी कहां?’’