2 महीने में ही नीरा अपनी दिनचर्या से ऊब गई. उसे अपने कालेज के लुभावने दिनों की याद आने लगी. कभी खाना बनाने का भी मूड न करता. कभी दालसब्जी कच्ची रह जाती, कभी रोटी जल जाती. उस ने अमन के सामने आगे पढ़ाई करने का प्रस्ताव रखा जिसे उस ने तुरंत मान लिया और घर के कामकाज के लिए एक नौकरानी का इंतजाम कर दिया.
अमन की सादगी का फायदा उठाते हुए नीरा ने अपने परिवार से भी मोबाइल के जरीए टूटे रिश्ते जोड़ लिए. अब वह कभीकभी कालेज के बाद अपने मायके भी जाने लगी. अमन इन सब बातों से बेखबर था. वह जीजान से नीरा को खुश रखने की कोशिश करता.
कुछ समय बाद अमन को लगा कि नीरा में बहुत बदलाव आ गया है. वह कालेज से आ कर या तो लैपटौप पर चैट करती है या फिर मोबाइल पर धीरेधीरे बातें करती रहती है. अमन कब आया, कब गया, खाना खाया या नहीं उसे इस बात का कोई ध्यान नहीं रहता. उस ने सबकुछ नौकरानी पर छोड़ दिया था.
अमन अंदर ही अंदर घुटने लगा. उस ने पाया कि आजकल नीरा बातबात में किसी राहुल नाम के प्रोफैसर का जिक्र करती है जैसे कितना अच्छा पढ़ाते हैं, बहुत बड़े स्कौलर हैं, देखने में भी बहुत स्मार्ट हैं आदिआदि.
अमन ने कहा, ‘‘भई, ऐसे सभी गुणों से पूर्ण व्यक्ति से हम भी मिलना चाहेंगे. कभी उन्हें घर बुलाओ.’’
यह सुन कर नीरा कुछ सकपका सी गई. समय बीतता गया. नीरा की लापरवाहियां बढ़ती ही जा रही थीं. कभी कपड़े धुले न होते, तो कभी घर अस्तव्यस्त होता. अमन ने दबे स्वर में आगाह भी किया. पर नीरा ने कोई ध्यान न दिया.