चाहे रात भर खाना न मिले लेकिन बरात का अपना एक अलग मजा है. ऐसा मजा जो न सेब में है न सेब के जूस में. बरात के आनंद को महसूस किया जाता है. उस का सहीसही वर्णन किया जाना उतना ही मुश्किल है जितना गधे को स्वीमिंग पूल में नहलाना.
घर में शादी का कार्ड देख कर मन राष्ट्रीय चैनल से एम टीवी में अपनेआप बदल गया. कार्ड सुंदर था. हिंदुस्तान में वरवधू चाहे खूबसूरत, सुघड़ हों न हों, लेकिन उन की शादी के कार्ड जरूर ही सुंदर होते हैं. लड़की के हाथों की मेहंदी का डिजाइन भले ही टेढ़ामेढ़ा, आड़ातिरछा क्यों न हो लेकिन कार्ड की छपाई बहुत ही आकर्षक होती है.
शादी का कार्ड फ्रिज के ऊपर रखा था. आमतौर पर मध्यवर्गीय घरों में शादी के कार्ड, राशनकार्ड, बिजली का बिना जमा किया बिल, बच्चों के रिजल्टकार्ड...सब के सब फ्रिज के ऊपर ही रखे जाते हैं. फ्रिज, अंदर का सामान तो ठंडा रखता ही है, ऊपर रखे टैंशन वाले कागजात भी ठंडा कर देता है. ठंडे बस्ते में डालना कहावत पुरानी हो गई है, नए जमाने की कहावत ‘फ्रिज के ऊपर रखना’ हो सकती है.
हमें मालूम था कि पड़ोसी शर्माजी के छोटे साहबजादे लल्लू की शादी है. बड़े वाले कल्लू की शादी तो हम 3 साल पहले ही निबटा चुके थे. कल्लू की शादी की यादें मन में जीवंत हो उठीं. खासतौर पर पनीर और छोले के स्वाद जीभ पर ताजा हो गए. मन में स्वाद ध्यान आते ही लगभग 10 प्रतिशत स्वाद तो मिल ही गया.
हम ने जानबूझ कर श्रीमतीजी से पूछा, ‘‘यह किस की शादी का कार्ड आया है?’’