सुबह सुबह घर पर लगी घंटी की आवाज से नींद खुली तो बहुत गुस्सा आया. पता नहीं कौन नामुराद छुट्टी के दिन भी चैन से सोने नहीं देता. अलसाते हुए दरवाजा खोला तो हंसी आ गई. एक व्यक्ति कार्टून बना सामने खड़ा था. उस की पैंट व टीशर्ट पर जगहजगह विभिन्न कंपनियों के नाम लिखे थे. एक आस्तीन पर मोबाइल की एक कंपनी का नाम तो दूसरी पर उस की प्रतिस्पर्धी कंपनी का नाम लिखा था. सीने पर एक शीतल पेय तो पेट पर एक सीमेंट कंपनी, पीठ पर एक एअरलाइंस का नाम यानी कुल मिला कर दर्जनभर से अधिक ब्रांड के नाम उस के कपड़ों पर लिखे थे.
मैं कुछ पूछता उस से पहले ही वह खीसें निपोर कर बोला, ‘‘सर, यह इन्वर्टर ले लीजिए. बहुत बढि़या क्वालिटी का है.’’
मुझे अब हंसी के बजाय गुस्सा आने लगा तो बोल उठा, ‘‘क्यों ले लूं यह इन्वर्टर?...और तुम हो कौन?’’
‘‘अरे सर, आप मुझे नहीं पहचानते? मुझे?’’ वह ऐसे बोला जैसे उसे न पहचानना गुनाह हो. फिर बोला, ‘‘मैं, मैं भारतरत्न.’’
मैं हैरान व अचंभित सा उसे देखता रह गया. भला मैं इसे क्यों पहचानूं? उसे ऊपर से नीचे तक गौर से देखा. न तो वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सा लगा और न ही कोई समाजसुधारक. फिर भी भारतरत्न जैसे ख्यातिप्राप्त अलंकरण का प्रभाव था, इसलिए कुछ नरम हो कर मैं पूछ बैठा, ‘‘अरे भाई, नहीं पहचाना तभी तो पूछ रहा हूं. वैसे, आप हैं क्या कि आप को भारतरत्न जैसे अलंकरण से नवाजा गया है?’’
‘‘लगता है आप टैलीविजन नहीं देखते वरना मुझे जरूर पहचानते. हम ने पाकिस्तान व बंगलादेश तक को हराया है. हां, यह बात दूसरी है कि हम आस्ट्रेलिया से हारे भी हैं,’’ उस की बात से मेरी हैरानी और भी बढ़ गई.