‘‘अब?’’ मृदुला ने ललितजी की आंखों में मुसकराते हुए ताका.
‘‘अपनी मुमताज बेगम के साथ अब हजरतगंज में हजरतगंजिंग करेंगे,’’ ललितजी आदत के अनुसार हंसे, ‘‘बेगम तैयार हैं गंजिंग करने के लिए या नहीं? हम लोग जब यहां पढ़ते थे तो हजरतगंज में घूमने को गंजिंग कहा करते थे.’’
‘‘टेलीविजन पर एक विज्ञापन आता है जिस में मुमताज बेगम को अपने बूढ़े शाहजहां पर विश्वास नहीं है कि वे उन के लिए ताजमहल बनवाएंगे, क्योंकि उन्होंने ताजमहल के लिए आगरा में कहीं जमीन नहीं खरीदी है,’’ मृदुलाजी ने हंसते हुए कहा.
‘‘तुम्हें बूढ़े शाहजहां दिखाई दिए लेकिन झुर्रियों से छुआरे की तरह सिमटीसिकुड़ी मुमताज बेगम दिखाई नहीं दी?’’ ललितजी हंस कर बोले.
‘‘औरत अपनेआप को कभी बूढ़ी नहीं मान पाती मेरे आका,’’ हजरतगंज की चौड़ी सड़क पर बिना किसी की परवा किए मृदुला ने ललितजी का हाथ थाम लिया.
मृदुला को पास खींचते हुए ललितजी मुसकराए और बोले, ‘‘उस विज्ञापन में मुमताज बूढ़ी जरूर है पर यहां इस हजरतगंज में इस हजरत के संग जो मुमताज बेगम है वह एकदम ताजातरीन और कमसिन युवती है.’’
‘‘पानी पर मत चढ़ाओ, बह जाऊंगी,’’ लज्जित सी मृदुलाजी हंस कर बोलीं, ‘‘उम्र का असर हर किसी पर होता है...आदमी पर भी, औरत पर भी.’’
‘‘पर महबूबा हमेशा जवान रहती है बेगम,’’ ललितजी बोले.
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‘‘किस के साथ ठहरे थे उस होटल में?’’ अचानक मृदुला ने पूछा तो ललितजी उन के चेहरे की तरफ गौर से देखने लगे...फिर कुछ सोच कर बोले, ‘‘सफी...उमेरा बानू सफी...कश्मीर की रहने वाली थी. मेरे साथ ही शोधकार्य कर रही थी विश्वविद्यालय में.’’