जिंदगी के गणित में हम कितनी ही सफल तकनीकें अपना लें, अनिश्चित का एक हाशिया छोड़ना ही पड़ता है. भूलों की पराबैंगनी किरणों के लिए एक स्थान, जो हमारी जिंदगी का अमिट हिस्सा हो, रहता है, मार्जिन एरर का.
चाहे महिका हो या अच्युत या फिर दर्शित ही, इस मार्जिन औफ एरर की गुंजाइश तो सब की जिंदगी में थी. हां, बेहतर किस ने यह बात समझी, यह बड़ी बात थी. महिका ने समझी यह बात? या फिर दर्शित मान पाया इस सच को? या कि अच्युत ने ही इस हाशिए को हाशिए पर छोड़, नया रास्ता तलाश लिया?
छोटे से फ्लैट के हवादार सुसज्जित कमरे में 12 बजे की काली रात के समय आरामदायक बिस्तर पर दर्शित और महिका आसपास सो रहे थे. 25 साल की महिका रातरानी सी महकती अपने पारदर्शी गुलाबी नाइटगाउन में निश्चिंत नींद में है.
32 साल का दर्शित नींद में भी उस की उपस्थिति को महसूस करता हुआ अनजाने ही अपने हाथों से महिका को जकड़ लेता है. तृप्ति और खुशी के स्पंदन से दर्शित की नींद कुछ खुल सी जाती है. महिका को अपने पास गहरी नींद सोता देख वह आश्वस्त हो फिर से नींद में डूब जाता है.
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नींद कितनी मुश्किल और अनमोल है, यह दर्शित कम बेहतर नहीं समझता. एक सुकूनभरी नींद के उचट जाने से ही तो उम्मीद की तलाश में वह इस रतजगे शहर मुंबई भागा आया था.
वरना, सिलीगुड़ी का वह छोटा सा मगर अच्छा खासा चलता होटल क्योंकर रातोंरात उस के सबकुछ छिन जाने का सबब बन जाता.