पहली बार अच्युत और दर्शित एकदूसरे से मिल रहे थे. महिका एक बड़े बिज़नैस फर्म का हिस्सा है, इतना तो जानता था दर्शित, लेकिन उस के सामने इतना अनिंद्य सुंदर युवक खड़ा होगा, जतन से बारबार दिल को घिस कर छुड़ाया गया. उस का डर उस के इतना सामने होगा, उसे अंदेशा न था.
साल में 10 लाख रुपए से ऊपर कमाने वाली महिका को कभी पैसे की नजर से आंका नहीं उस ने, मगर आज अच्युत के आगे महिका उस की पहुंच के बाहर के छीके में लगी मक्खन महसूस हो रही है.
आज से 4 वर्षों पहले जब दोनों रहने को एक अदद किराए का फ्लैट ढूंढ़ रहे थे तब महिका दर्शित से टकराई थी और उसी की पहल पर दोनों किराए के इस फ्लैट में साझा हिसाब से रहने लगे थे. तब महिका किसी छोटे से वर्कशौप में रिसैप्शनिस्ट थी और छिटपुट मौडलिंग करती थी. अव्वल तो वह महीने के 15 हजार रुपए किराए दे ही नहीं सकती थी, दूसरे, जितना वह पैसे दे सकती थी, दर्शित ने उस की भी कभी आशा नहीं की. उस ने सिर्फ मांगा था भरोसा और प्यार. और हां, दर्शित को महिका से प्यार होता जा रहा था.
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मिलनसार स्वभाव के हैंडसम अच्युत को देख दर्शित झिझक रहा था. सरसरी निगाह उस ने अच्युत की उंगलियों पर चलाई. सोने की अंगूठी जिसे वह ढूंढ़ रहा था, वास्तव में वह तो उस की उन उंगलियों में उस अंगूठी की अनुपस्थिति को ढूंढ़ रहा था, जिसे महिका ने 5 दिनों पहले खरीदा था. उसे अच्युत की उंगलियां सोनेहीरे की अंगूठियों से लदीफंदी मिलीं, जिन में महिका की अंगूठी भी रही हो. लेकिन अब दर्शित को खुशफहमी में रहने की कला आ गई थी शायद डार्विन के सर्वाइवल सिद्धांत के अनुरूप. उस ने अंगूठी वाली बात दिल से निकाल देने में ही अपनी भलाई समझी.