"पापा, मैं यह शादी नहीं करना चाहती. प्लीज, आप मेरी बात मान लो..."
"क्या कह रही हो तुम? आखिर क्या कमी है मुनेंद्र में? भरापूरा परिवार है. खेतखलिहान हैं उस के पास. दोमंजिले मकान का मालिक है. घर में कोई कमी नहीं. हमारी टक्कर के लोग हैं," उस के पिता ने गुस्से में कहा.
"पर पापा, आप भी जानते हैं, मुनेंद्र 5वीं फेल है जबकि मैं ग्रैजुएट हूं. हमारा क्या मेल?" मंजू ने अपनी बात रखी.
"मंजू, याद रख पढ़नेलिखने का यह मतलब नहीं कि तू अपने बाप से जबान लड़ाए और फिर पढ़ाई में क्या रखा है? जब लड़का इतना कमाखा रहा है, वह दानधर्म करने वाले इतने ऊंचे खानदान से है फिर तुझे बीच में बोलने का हक किस ने दिया? देख बेटा, हम तेरे भले की ही बात करेंगे. हम तेरे मांबाप हैं कोई दुश्मन तो हैं नहीं," मां ने सख्त आवाज में उसे समझाने की कोशिश की.
"पर मां आप जानते हो न मुझे पढ़नेलिखने का कितना शौक है. मैं आगे बीएड कर टीचर बनना चाहती हूं. बाहर निकल कर काम करना है, रूपए कमाने हैं मुझे," मंजू गिड़गिड़ाई.
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"बहुत हो गई पढ़ाई. जब से पैदा हुई है यह लड़की पढ़ाई के पीछे पड़ी है. देख, अब तू चेत जा. लड़की का जन्म घर संभालने के लिए होता है, रुपए कमाने के लिए नहीं. तेरे ससुराल में इतना पैसा है कि बिना कमाई किए आराम से जी सकती है. चल, ज्यादा नखरे मत कर और शादी के लिए तैयार हो जा. हम तेरे नखरे और नहीं सह सकते. अपने घर जा और हमें चैन से रहने दे," उस के पिता ने अपना फैसला सुना दिया था.