लेखक-विश्वजीत बनर्जी
शहर में रहरह कर सिलसिलेवार बम धमाके हो रहे थे. चारों तरफ अफरातफरी का माहौल था. मैं टेलीविजन पर नजरें गड़ाए बैठा था. मुन्ना भी वहीं बैठा अपना होमवर्क कर रहा था. अचानक उस ने पूछा, ‘‘पापा, बहुत देर से कोई ब्लास्ट नहीं हुआ है, अगला ब्लास्ट कब होगा?’’
‘‘मैं कैसे बता सकता हूं बेटा?’’
‘‘क्यों पापा, आप इतना टेलीविजन जो देखते हैं.’’
‘‘बेटा, टेलीविजन देखने से ब्लास्ट का पता नहीं चलता.’’
‘‘तो फिर टेलीविजन पर ब्लास्ट कैसे दिखाते हैं?’’
‘‘ब्लास्ट होने पर टेलीविजन वाले वहां पहुंच जाते हैं और उस का फोटो खींचते हैं.’’
‘‘क्या टेलीविजन वाले कहीं भी पहुंच सकते हैं?’’ मुन्ना ने पूछा.
‘‘हां.’’
‘‘नहीं, पापा.’’
‘‘क्यों नहीं, बेटा?’’
‘‘कल हम सुपरमार्केट गए थे न.’’
‘‘हां बेटा, गए तो थे.’’
‘‘वहां कोने में एक भिखारी मर गया था न.’’
‘‘हां, हां.’’
‘‘वहां टेलीविजन वाले क्यों नहीं थे?’’
‘‘बेटा, टीवी वाले तभी पहुंचते हैं जब कोई बड़ा आदमी मरता है या बहुत सारे लोग एकसाथ मरते हैं.’’
तभी टेलीविजन पर प्रधानमंत्री आ गए. वह बम धमाकों के बारे में अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे.
‘‘देखो, यह बहुत बडे़ आदमी हैं,’’ मैं ने टेलीविजन की तरफ इशारा किया.
‘‘यह कौन हैं, पापा?’’
‘‘यह हमारे पी.एम. यानी प्राइम मिनिस्टर हैं.’’
‘‘पर पापा, यह इतने दुबले हैं, बोलते भी इतना धीरेधीरे हैं, तो बड़े आदमी कैसे हुए?’’
‘‘देखो, मैं बताता हूं. तुम स्कूल में धीरे बोलते हो या जोर से?’’
‘‘धीरे से, पापा.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘जोर से बोलने पर मैडम बहुत डांटती हैं, पर पापा, पी.एम. को कौन मैडम डांटती है?’’
मैं कुछ बोलता तभी ब्रेकिंग न्यूज में एक और ब्लास्ट की खबर आई.
‘‘पापा, पापा, देखो, एक और ब्लास्ट हो गया,’’ मुन्ना उछल कर ताली बजाते हुए बोला.