आज घर में बड़ी रौनक थी. प्रेम की प्यारी बिटिया अनुभा का ब्याह जो था. पूरा घर दुलहन की तरह सजा था. प्रेम ने भव्य पंडाल लगवाया था. शहर से ही शहनाई वालों और कैटरिंग वालों की व्यवस्था की थी. बरात शाम को शहर से आने वाली थी. बरात के रास्ते पर भव्य स्वागत द्वार लगाए गए थे. फूलों की महक ने पूरे महल्ले को महका दिया था. सुबह से ही मंगल ध्वनि माहौल को सुमधुर बना रही थी. प्रेम सारी तैयारियों से संतुष्ट था. हफ्ते भर से शादी की भागदौड़ में लगा हुआ था, इसलिए थकान के मारे उस का शरीर टूट रहा था. थोड़ा दम लेने के लिए वह पंडाल के एक कोने में पड़ी कुरसी पर पसर गया, तो एक फ्लैशबैक फिर उस की आंखों के सामने घूम गया. मधु के साथ इंटरसिटी ऐक्सप्रैस में आना. फिर मधु का दूर जाना और फिर मिलना. अनुभा का बचपन, उस की किलकारियां. अनुभा की शादी होने का वक्त आया तो बिटिया की विदाई के बारे में सोचसोच कर प्रेम की रुलाई थामे न थमती थी. प्रेम ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया. तभी उस के कानों ने कुछ सुना. कोई किसी को बता रहा था कि अनुभा का असली पिता प्रेम न हो कर दीपक है. प्रेम तो अनुभा का सौतेला पिता है. प्रेम ने बाएं मुड़ कर देखा, तो मधु का पहला पति दीपक सजेधजे कपड़ों में लोगों से बात कर रहा था. इसे यहां किस ने बुलाया? सोचते हुए प्रेम क्रोध के कारण कांपने लगा. तभी उस ने देखा कि दीपक मधु के पास चला गया. प्रेम ने मधु के चेहरे को गौर से देखा. उसे लगा कि आज मधु के चेहरे पर अपने तलाकशुदा पति दीपक के लिए पहले जैसी घृणा नहीं थी. क्या मधु ने ही आज दीपक को यहां बुलाया है? यह सोचते हुए प्रेम का दिल बैठ गया. दीपक के साथ खड़ा आदमी शायद सभी मेहमानों को यही बता रहा होगा कि अनुभा का असली पिता दीपक है.