कुसुम और प्रज्ञा के लिए मां जैसी भी थीं, उन की जिम्मेदारी थीं. बेशक यह जिम्मेदारी निभाते हुए उन का स्वयं का जीवन असहनीय बन गया. लेकिन मां का दर्द वे समझती थीं क्योंकि वे भी तो मां थीं.