पिछला भाग- मां मां होती है: भाग-2
दोनों बहनों में केवल फोन से ही बातें होतीं. कुसुम मां की खाने की फरमाइशें देख कर हैरान हो जाती. अगर कुछ कहो तो मां वही पुराना राग अलापतीं, ‘तुम्हारे पापा होते तो आज मेरी यह गत न होती.’ यह सब सुन कर वह भी चुप हो जाती. मगर रमेश उबलने लगा था. उस ने पीना शुरू कर दिया. अकसर देररात गए घर आता और बिस्तर पर गिरते ही सो जाता.
कुसुम कुछ समझानाबुझाना चाहती भी, तो वह अनसुना कर जाता. दोनों के बीच का तनाव बढ़ने लगा था. मगर आंटी को सिर्फ समय से अपनी सफाई, पूजा, सत्संग और भोजन से मतलब था. इन में कोई कमी हो जाए, तो चीखचीख कर वे घर सिर पर उठा लेतीं. अब हर वक्त प्रज्ञा को याद करतीं कि वह ऐसा करती थी, महेश मेरी कितनी सेवा करता था आदिआदि.
यह सब सुन कर रमेश का खून खौल जाता. असल में महेश अपने भाइयों में सब से छोटा होने के कारण सब की डांट सुनने का आदी था. लेकिन रमेश 2 बहनों का एकलौता भाई होने के कारण लाड़ला पुत्र था. उस के बरदाश्त की सीमा जब खत्म हो गई तो एक रात वह वापस घर ही नहीं आया.
सब जगह फोन कर कुसुम हाथ पर हाथ धर कर बैठ गई. सुबह ननद
का फोन आया कि वह हमारे घर में
है. कानपुर से लखनऊ की दूरी महज
2-3 घंटे की तो है, सारी रात वह कहां था? इस का कोई जवाब ननद के पास भी नहीं था. फिर तो वह हर 15 दिन में बिना बताए गायब हो जाता और पूछने पर तलाक की धमकी देने लगा. कभी कहता, ‘कौन सा सुख है इस शादी से, अंधी लड़ाका सास और बेवकूफ बीवी, न दिन में चैन न रात में.’