पिछला भाग पढ़ने के लिए- लंबी कहानी: न जानें क्यों भाग- 2
‘‘तू मेरी बैस्ट फ्रैंड है या राघव की? रुखसाना मेरे पास घर छोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था. शायद अब राघव की अक्ल ठिकाने आ जाएगी और वह मेरी कद्र करने लगेगा. भैयाभाभी का भी यही कहना है कि मैं ने बिलकुल ठीक किया.’’
‘‘रास्ता ढूंढ़ने से मिलता है मानसी. तूने तो बगैर सोचेसमझे वही किया जो भैयाभाभी ने तुझे करने के लिए कहा. तूने सोचा है कि तू कब तक अपने भैयाभाभी के घर में रहेगी? अभी तो वे तेरे फैसले को सही कह रहे हैं, लेकिन अगर राघव और तेरे बीच जल्दी सुलह न हुई, तो क्या तब भी वे तेरा साथ देंगे?’’
‘‘साथ क्यों नहीं देंगे? वे अब भी तो मेरा साथ दे ही रहे हैं. रुखसाना तुझे यहां आ कर देखना चाहिए भैयाभाभी और उन के दोनों बेटे किस तरह मुझ पर और मुसकान पर जान छिड़कते हैं. इस से ज्यादा मैं उन से और क्या उम्मीद करूं?’’ मानसी ने अपने मायके की तारीफ करते हुए कहा.
‘‘देखेंगे कि यह खातिरदारी और दिखावा कितने दिनों तक चलता है. एक बात याद रखना मानसी, मेहमानों की तरह मायके आई बेटी सब को अच्छी लगती, लेकिन अपना घर छोड़ कर मायके आ कर बैठी बेटी किसी को अच्छी नहीं लगती है. मेरी बात कड़वी बेशक है, मगर सच है. फिर जहां तक तेरा सवाल है, तूने तो शादी भी अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर की थी. मैं कामना करूंगी कि तुझे सही और गलत के बीच का फर्क जल्दी समझ आए,’’ कह रुखसाना ने मानसी की बात सुने बिना फोन काट दिया.