महकअपनी ही मस्ती में झूमती, गुनगुनाती चली आ रही थी. अपार खुशी से उस का मन गुलाब की तरह खिल उठा था. वह मोहित से मिल कर जो आ रही थी. मोहित, जिस के लिए बचपन से उस का दिल धड़कता था. जब वह मात्र 10 वर्ष की थी, तब मोहित उस के पड़ोस में रहने आया था. उस के और मोहित के परिवार में अच्छी दोस्ती हो गई थी.
एक दिन मोहित की मम्मी ने मजाक में कह दिया, ‘‘महक तो सचमुच बड़ी प्यारी है. इसे तो मैं अपने घर की बहू बनाऊंगी.’’
बस फिर क्या था, सब हंस दिए थे. मोहित और महक तो मारे शर्म के लाल हो गए थे.
‘‘मुझे शादी ही नहीं करनी,’’ कहते हुए महक अपने घर भाग गई.
मगर यह बात यहीं समाप्त नहीं हुई थी. तभी से मोहित और महक के मन में प्रेम का बीज आरोपित हो गया था. यह बीज समय के साथ धीरेधीरे पनपने लगा था और फिर प्रीत का एक हराभरा वृक्ष बन कर तैयार हो गया था. बचपन दोनों का साथ खेलते बीता था.
12वीं कक्षा के बाद मोहित मैडिकल की पढ़ाई करने के लिए लखनऊ चला गया. दूर रहने पर भी दोनों अनकहे प्रेम की मधुर डोर से बंधे रहे थे. जब मोहित रुड़की आता तो दोनों सारा दिन साथ ही गुजारते. ऐसा लगता जैसे महक और मोहित दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. महक तो मोहित के प्यार में राधा की तरह दिनरात डूबी रहती थी.
मोहित की मैडिकल की पढ़ाई पूरी होने पर एक दिन मोहित और महक बगीचे में हरसिंगार के वृक्ष के नीचे बैठे थे. तभी मोहित ने महक को बड़े सीधे शब्दों में प्रोपोज करते हुए कहा, ‘‘महक, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’