मैं बिस्तर पर ही थी कि मोबाइल बज उठा, ‘‘हैलो.’’
‘‘जी दीदी, नमस्ते, मैं नवीन बाबू बोल रहा हूं.’’
इतनी सुबह नवीन बाबू का फोन? कई शंकाएं मन में उठने लगीं. उन के घर के सामने की सड़क के उस पार मेरा नया मकान बना था नागपुर में. वहां कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई. ‘‘जी भैया, नमस्ते. खैरियत तो है?’’
‘‘आप को एक खबर देनी है,’’ नवीन बाबू की आवाज में बौखलाहट थी, ‘‘दीदी, आप के शौहर की कोई जवान बेटी है क्या?’’
‘‘हां, है न.’’
‘‘उस का नाम निलोफर है क्या?’’
‘‘नाम तो मु झे पता नहीं. हां, उस महल्ले में मेरी एक कलीग रहती है, उस से पूछ कर बतला सकती हूं.’’
‘‘मु झे विश्वास है, निलोफर अब्दुल मुकीम की दूसरी बीवी की बेटी है. पता लिखा है प्लौट नं. 108, लश्करी बाग.’’
‘‘हां, मेरे घर का पता तो यही था. मगर हुआ क्या, बतलाइए तो.’’
‘‘निलोफर के साथ कांड हो गया है. पेपर में खबर छपी है,’’ भैया कोर्ट की भाषा में बोले, ‘‘कल पांचपावली थाने की पुलिस मेरे कोर्ट में एक आरोपी को पकड़ कर लाई थी. जज साहब ने बड़ी मुश्किल से उस का पीसीआर दिया है. आरोपी पर 4 धाराएं लगी हैं. लड़की को बहलाफुसला कर होटल में ले जा कर बलात्कार करने और लड़की द्वारा शादी के लिए कहने पर उसे और उस के बाप से 5 लाख रुपए की डिमांड करने, न देने पर बाप को जान से मार देने की धमकी के 4 केस लगाए गए हैं.’’ यह सब सुन कर मेरे कानों से गरमगरम भाप निकलने लगी. सिर चकराने लगा. वह आगे बोलता रहा, ‘‘इतना ही नहीं दीदी, आरोपी खुद पुलिसमैन है और अनुसूचित जाति का है. दीदी, आप जब नागपुर आएंगी न, तब पीसीआर की कौपी दिखलाऊंगा.’’ नवीन बाबू की आवाज ‘‘हैलो, हैलो...’’ आती रही और मेरे हाथ से मोबाइल छूट कर बिस्तर पर गिर पड़ा.