लेखक- डा. मनोज मोक्षेंद्र
उमाकांतजी के ड्राइंगरूम का नजारा ही कुछ अलग था. वहां सबकुछ उलटापलटा पड़ा हुआ था. वे हुड़दंग करने के मूड में लग रहे थे. सोसायटी के कोई दर्जनभर लोग वहां जमे हुए थे. टेबल पर व्हिस्की की बोतलें थीं और कुछ लोग शतरंज के खेल में व्यस्त थे जबकि टीवी पर कोई वल्गर फिल्म चल रही थी. जब मैं ने झिझकते हुए उमाकांतजी के जनानखाने का जायजा लेना चाहा तो वे बोल उठे, ‘‘यार, बीवी को अभीअभी राहुल के साथ उस के मायके भेज दिया है जो यहीं राजनगर में है. अब हमारे ऊपर कोई निगरानी रखने वाला नहीं है. आज कई दिनों बाद तो मौजमस्ती का मूड बना है. सोचा कि तुम्हें भी साथ ले लूं. ऐसा मौका रोजरोज कहां आता है? खूब खाएंगेपीएंगे और एडल्ट फिल्में देखेंगे.’’
चूंकि मैं कभी ऐसे माहौल का आदी नहीं रहा, छात्र जीवन में भी पढ़नेलिखने के सिवा कभी कोई ऐसीवैसी नाजायज हरकत नहीं की, इसलिए मैं वहां काफी देर तक असहज सा रहा. बड़ी घुटन सी महसूस कर रहा था. तभी कुलदीपा ने कहला भेजा कि लखनऊ के ताऊजी सपरिवार पधारे हैं. सो, मुझे वहां से मुक्त होने का एक बहाना मिल गया. मैं ने उस माहौल से विदा होते समय राहत की सांस ली.
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उस शाम जब मैं लखनऊ से पधारे मेहमानों को घंटाघर का मार्केट घुमाने ले जा रहा था तो अपार्टमैंट के ही कुछ बदमिजाज लौंडों के बीच खेलखेल में नोकझोंक के बाद मारपीट हो गई जिस में उमाकांतजी के लड़के राहुल का सिर फट गया. मामला थाने तक जाने वाला था कि मैं ने बीचबचाव कर के झगड़े को निबटाया और अपने मेहमानों को वापस घर में बैठा कर राहुल को मरहमपट्टी कराने अस्पताल चला गया. काफी देर बाद वापस लौटा तो मेहमानों को होटल में डिनर कराने ले गया क्योंकि अपार्टमैंट में पैदा हुए उस माहौल में कुलदीपा के लिए डिनर तैयार करना बिलकुल संभव नहीं था. बहरहाल, मैं यह सोचसोच कर शर्म में डूबा जा रहा था कि आखिर, ताऊताई क्या सोच रहे होंगे कि कैसे वाहियात अपार्टमैंट में हम ने फ्लैट लिया है और कैसे वाहियात लोगों के साथ हम रह रहे हैं. सुबह जब ताऊताईजी टहलने जा रहे थे तो अपार्टमैंट में गजब की गंदगी फैली हुई थी. बोतलें, कंडोम, सिगरेट के पैकेट आदि रास्ते में बिखरे हुए थे.