लेखिका- सावित्री रानी
तपेश खुद काम के सिलसिले में कई देशों में रह चुका था. इसलिए उसे इंग्लिश के भिन्नभिन्न एकसैंट्स की पहचान थी. उसे पता था कि लैबनान और ईजिप्ट जैसे देशों में पैसे वाले लोग अपनी पढ़ाई फ्रैंच माध्यम में भी करते हैं. तभी तपेश को कुछ दिन पहले पीयूष से फोन पर हुई बात याद आई. जब तपेश के घर पार्टी थी और पीयूष भी आमंत्रित था. लेकिन पार्टी वाले दिन पीयूष का फोन आया था, ‘‘आज मैं तेरे यहां पार्टी में नहीं आ सकूंगा. सारी यार.’’
‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?’’
‘‘तबीयत बिलकुल ठीक है. दरअसल, आज ईजिप्ट से मेरा एक दोस्त आ रहा है तो उसे रिसीव करने जाना है.’’
‘‘ ठीक है.’’
‘‘उफ, तो यही दोस्त था जो ईजिप्ट से आया था,’’ तपेश अकेले ही बैठाबैठा बुदबुदा रहा था.
तभी नर्स ने आ कर सूचना दी कि आप पीयूष से मिल सकते हैं. उसे रूम में शिफ्ट कर दिया गया है.
तपेश रूम में पहुंचा तो वह महिला पहले से पीयूष के बैड के पास पड़ी कुरसी पर बैठी थी. पीयूष की हालत ठीक लग रही थी. उस ने उस महिला से मिलवाते हुए कहा, ‘‘तपेश, यह मेरी दोस्त नाहिद है. ईजिप्ट से आई है और नाहिद यह मेरा दोस्त तपेश.’’
‘‘हाई नाहिद.’’
‘‘हाई तपेश.’’
नाहिद की आंखों में पीयूष के लिए झलकता चिंता का भाव काफी कुछ कह रहा था. पीयूष की हालत अब ठीक लग रही थी. तपेश उन दोनों को अकेला छोड़ कर डाक्टर से बात करने के बहाने वहां से चला गया. पता चला कि डाक्टर तो अभी व्यस्त हैं, तो वह रूम के बाहर बैंच पर बैठ गया.