'उन की निगाहों में जाने कितने ही रंग समाए हैं....
पर हर रंग में मुझे अपना ही अक्स नजर आता है....'
अमर ने एकटक प्रतिभा को देखते हुए कहा तो वह हंस पड़ी.
"चलो आज तुम्हें अपने पैरंट्स से मिलवा दूं." अमर ने प्रतिभा का हाथ थाम कर फिर से कहा. प्रतिभा खुशी से चीख पड़ी,
" सच"
उस के चेहरे पर शर्म की लाली बिखर गई.
माहौल में और भी रंग भरते हुए अमर ने कहा, "सोचता हूं लगे हाथ उन से हमारी शादी का दिन भी तय करवा लूं."
प्रतिभा ने हौले से पलकें उठाते हुए कहा," सीधे शब्दों में कहो न कि तुम मुझे प्रपोज कर रहे हो. इतने निराले अंदाज में तो कभी किसी ने प्रपोज नहीं किया होगा."
प्रतिभा की बात सुन कर अमर हंस पड़ा फिर गंभीर होता हुआ बोला," सच प्रतिभा बहुत प्यार करने लगा हूं तुम्हें और तुम से जुदा हो कर जीने की बात सोच भी नहीं सकता. इसलिए चाहता हूं जल्द से जल्द हमारे रिश्ते को घर वालों की भी स्वीकृति मिल जाए. "
"जरूर मिल जाएगी स्वीकृति. तुम बताओ कब चलना है?"
"कल कैसा रहेगा? एक्चुअली कल सटरडे है. सुबह निकलेंगे तो शाम से पहले ही लखनऊ पहुंच जाएंगे. फिर संडे वापस दिल्ली."
"वेरी गुड. मैं इंडियन ड्रैस पहन कर चलूंगी ताकि तुम्हारे पेरेंट्स को एक नजर में पसंद आ जाऊं. " कह कर उस ने अपना सिर अमर के कंधों पर टिका दिया.
अमर और प्रतिभा एक ही ऑफिस में पिछले 4 सालों से साथ काम करते आ रहे हैं. प्रतिभा पटना की है और दिल्ली में पढ़ाई के साथ पार्टटाइम जॉब करती है. इधर अमर भी लखनऊ से अपने सपनों को पूरा करने दिल्ली आया हुआ है. दोनों इतने दिनों से साथ हैं. एकदूसरे को पसंद भी करते हैं. पर आज पहली दफा अमर ने साफ तौर पर प्रतिभा से दिल की बात कही थी. दोनों के दिल सुनहरे सपनों की दुनिया में खो गए थे.