अजनबी होते हुए भी कभीकभी किसी के साथ ऐसी आत्मीयता बढ़ जाती है मानो बरसों से जानते हैं. विशाल और नीरजा कुछ इसी तरह मिले और साथ बढ़ता गया.
वे अब 5-7 दिनों पर लाइब्रेरी जाते. उन का लाइब्रेरी जाने का समय साढ़े 4 बजे होता. किताब जमा करते व नई किताब लेते 5 बज जाते.
5 बजे नीरजा अपना सामान समेट लेती. फिर वे अकसर ही बाहर कौफी पीने चले जाते. अब नीरजा उन से खूब खुल कर बात करती थी. वे भी उसे चिढ़ा देते थे. जब वे चिढ़ाते तो वह झूठे गुस्से में मुंह फुला लेती. फिर वे उसे मनाते. उस की सुंदरता के पुल बांधते. वह खिलखिला कर हंस देती. वह उन्हें अपना स्मार्ट बौयफ्रैंड कहती. वे अकसर कहते, उन की उम्र उस के बौयफ्रैंड बनने की नहीं है, तब वह नाराज हो जाती. वह कहती, यह बात दोबारा नहीं कहना. उम्र से क्या होता है. उस के स्मार्ट बौयफ्रैंड जैसा स्मार्ट कोई और हो तो बताएं.
उस ने कई बार साफ कहा था कि वे उसे बहुत अच्छे लगते हैं. वह अकसर ही उन के कंधे पर अपना सिर टिका कर आंखें मूंद लेती थी. वे मना करते, कहते, ‘लोग देख रहे हैं.’ तो वह कहती, ‘देखने दो. मुझे अच्छा लगता है.’
वे एक हाथ से ड्राइविंग करते व दूसरे हाथ से उस के बालों को हलकेहलके सहलाते रहते. उन्होंने एकाध बार उसे कोई गिफ्ट दिलाने की कोशिश की थी, पर उस ने सख्ती से मना कर दिया था. वह कहती थी, ‘‘कौफी, पैस्ट्री पकौड़ा तक ठीक है पर गिफ्ट वगैरह नो, बिग नो.’’