बाहर निकल कर किस तरह से वे अपनी कार तक पहुंचे, उन्हें नहीं मालूम. कार में बैठते ही स्टियरिंग पर सिर टिका कर वे बेआवाज फफक पड़े. उन की नीरजा खो गई थी. इन बीते दिनों की उन की गैरहाजिरी ने उन से उन की नीरजा छीन ली थी. पर वे ऐसे हार नहीं मानेंगे. शहर के बड़े से बड़े डाक्टर को ला कर खड़ा कर देंगे. वे नीरजा को ऐसे नहीं मरने देंगे. डाक्टर मित्रा शहर के सब से बड़े कैंसर स्पैशलिस्ट हैं. उन को ले कर आएंगे. कोई तो रास्ता होगा, कोई तो रास्ता निकलेगा.
उन्होंने झटके से सिर उठाया व आंसुओं को पोंछ डाला. दूसरे दिन वे पहले बैंक गए, 50 हजार रुपए निकाले. फिर वे डाक्टर मित्रा के पास खुद गए. उन्होंने दिन में एक बजे विजिट का वादा किया. उस के बाद वे 144, मीरा?पट्टी रोड चले गए.
घर पर ताला लटक रहा था. वे सन्न रह गए. अगलबगल से पता करने पर पता चला कि सब नीरजा को ले कर ज्यूड हौस्पिटल गए हुए हैं. वे बदहवास गाड़ी चला कर ज्यूड हौस्पिटल पहुंचे. काउंटर पर पता चला नीरजा आईसीयू में है. आईसीयू के बाहर ही नीरजा की मां बैठी धीरेधीरे रो रही थीं. उन की बगल में ही एक 13-14 वर्ष का नीरजा की शक्ल जैसा लड़का बैठा था. वह नीरजा का भाई होगा. वे जा कर नीरजा की मां की बगल में खड़े हो गए. उन्हें देखते ही नीरजा की मां जोर से रो पड़ीं.
‘‘आप के जाने के बाद जब नीरजा जागी तो मैं ने उसे बताया कि विशाल आए थे. आप का नाम सुनते ही जैसे वह खिल गई, मुसकराई भी थी. मुझे लगा कि वह कुछ ठीक हो रही है. पर उस के बाद उस की तबीयत बिगड़ गई. थोड़ीथोड़ी देर में 2 उलटियां हुईं. उलटी में खून था साहब. बगल के डाक्टर प्रकाश को मेरा बेटा बुला लाया. नीरजा बेहोश हो गई थी. उन्होंने उसे तुरंत अस्पताल ले जाने को कहा. उन्होंने ही एंबुलैंस भी बुला दिया. यहां डाक्टरों ने जवाब दे दिया है.’’